जीवन का सुख
सुख
जीवन में आज हर व्यक्ति घुटन महसूस कर रहा है| भागदौड़ और टेंशन की जिंदगी में कई ऐसे कारण है जो हर व्यक्ति की इस घुटन को बढ़ा रहे हैं| कुछ कारण ऐसे हैं जो आम जीवन का हिस्सा बन गए हैं|
हर किसी को हम कहते हुए सुन सकते हैं, समय नहीं है, आर्थिक समस्या चल रही है, हर महीने डॉक्टर का बिल भरना पड़ता है, नौकरी का भरोसा नहीं है, बिजनेस बदलना चाहता हूँ ,
बच्चों की लाइफ का सवाल है उन्हें अच्छी शिक्षा दिलाना चाहता हूं, पति पत्नी दोनों कमाते हैं फिर भी खर्चा नहीं चल रहा है, किस्मत साथ नहीं दे रही है,मैं तो दुखी हो गया हूँ क्या करूँ? दोस्तों यह वो कारण है जिनसे कोई व्यक्ति अछूता नहीं है चाहे अमीर हो या गरीब हर व्यक्ति अपने आप को सुविधा संपन्न बनाना चाहता है | हर व्यक्ति चाहता है उसके बच्चों का करियर बने| हर व्यक्ति चाहता है उसके पास अथाह धन दौलत हो | सुविधा संपन्न होना कोई बुरी बात नहीं है | बच्चों का कैरियर बनाना बहुत अच्छी बात है अथाह धन दौलत होना भी कोई बुरी बात नहीं है | बुरा सिर्फ इसमें इतना सा है कि पहले लोग दाल रोटी का मतलब अपनी थाली की दाल रोटी से लगाते थे लेकिन आज दाल रोटी की परिभाषा बदल चुकी है आज हमारी थाली की दाल रोटी में सिर्फ दाल रोटी ही नहीं रही बल्कि ब्रेकफास्ट, लंच, डिनर और उसके बाद भी गुंजाइश बाकी रह जाती है| भगवान को मंदिर में छप्पन भोग का प्रसाद शायद सबसे बड़ा भाेग माना जाता है| लेकिन शादी के डिनर में आजकल यदि कहीं 56 आइटम बने हो तो वो भी कम लगते हैं | मेज़बान इन्हें और बढ़ा कर ही अपने मेहमानों का प्रसाद वितरण करने की कोशिश करता है | यह तो हुई खाने की बात फेशन के नाम पर हम कपड़ों से लेकर अपने शरीर के हर अंग के लिए आवश्यकता से अधिक खर्च करने लगे हैं | यही स्थिति आभूषण की है | जूते चप्पलों तक की डिजाइनिंग पर हमारी नजर इतनी पैनी हो गई है कि चाहे हमारे पास कितनी ही जोड़ी जूते चप्पल हो कपड़ों की अलमारियां भरी पड़ी हो लेकिन नई वैरायटी बाजार में आने पर सबसे पहले हमारे पास ही होनी चाहिए | और अब तो लोग कपड़ो की तरह गाड़ियों को बदलने लगे हैं | गाड़ियां बदलना भी फैशन हो गया है | आजकल कपड़ों को कौन देखता है? हमारा सामर्थ हो या ना हो लेकिन महंगे स्कूल में पढ़ना स्टेटस सिंबल हो गया है | घरेलू उपकरणों में हम विद्युत उपकरणों का इतना उपयोग करने लगे हैं कि खाने के साथ साथ हम बिजली भी हमारे शरीर को भेंट कर रहे हैं | पैदल चलने का रिवाज हम खत्म कर चुके हैं 21 जून को हम अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रुप में घोषित करवा चुके हैं | लेकिन 21 जून को ही हम इसके लिए समय निकाल लें तो बहुत बड़ी बात है| किसी ने यदि भूल से सत्यनारायण की कथा का निमंत्रण दे दिया और मजबूरी में हमें वहां जाना पड़ा तो कथावाचक की कथा को हम मजबूरी में सुनते जरूर है लेकिन उसके महत्व को हम वही अर्पण कर आते हैं कहीं साथ ले आए तो ना तो हम हमारे बच्चों की लाइफ बना पाएंगे न हमारी। जल और पर्यावरण के बारे में तो बात करना हम उचित समझते ही नहीं है क्योंकि हम तो हमारे बच्चों को ऐसा वैज्ञानिक बनाने की तैयारी कर रहे हैं जो इनके विकल्प खोज कर दुनिया का सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिक बनने का सपना पूरा करेगा । बचा इंटरनेट और मोबाइल तो इसने हमारे सारे काम इतने आसान कर दिए हैं की स्मरण शक्ति तेज करने वाली दवाओं की हमें कोई जरूरत नहीं पड़ेगी क्योंकि सारी चीजें इसी पर मिल जाती है तो हम याद भी क्यों रखे। हमारे पास चाहे सामाजिक और पारिवारिक कामों के लिए समय नहीं हो लेकिन सोशल मीडिया के नाम पर हम चैटिंग कर हम अपने समय न होने का पक्का प्रमाण दे देते हैं | ब्रह्मांड के रहस्य को जानने के लिए वैज्ञानिक खोजे करना आवश्यक है लेकिन उनके दुरुपयोग से कहीं हम अपनी घुटन तो नहीं बढ़ा रहे हैं? हम आपसी प्रेम भाईचारा तो खत्म नहीं कर रहे? हमारी संस्कृति और सभ्यता को तो दांव पर नही लगा रहे हैं?और सबसे बड़ी बात कही हम अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए जल, थल, नभ को प्रदूषित कर प्राकृतिक वरदानों का रासायनिकरण कर उनका दम घोटने की तैयारी तो नहीं कर रहे हैं? सोच कर देखें।
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