आधुनिक और प्राचीन जीवन का असमंजस

आज के इस आधुनिकरण से ज़िंदगियाँ जहाँ रंगीन बन रही है वही रंगहींन  भी हो रही  है |  कुछ पल, कुछ समय ,कुछ दिनों  लिए ज़िंदगी रंगीन लगने लगती है लेकिन कुछ ही पलों, कुछ ही समय, कुछ ही दिनों में वही रंगीनियां फीकी पड  कर रंगहीन हो जाती है |  ज़िंदगी के  उतरने और चढ़ने का आभास यह  तेज भागती , दौड़ती, इठलाती ,बलखाती ज़िंदगी हमे करा ही देती है |  वजह है की इस आधुनिक युग में सही गलत का अंदाज लगा पाना बड़ा मुश्किल सा लगने लगा है |  अच्छे बुरे की पहचान करने में असमंजस हो गया है |  एक पल के लिए कुछ अच्छा लगने लगता है  अगले ही पल वही बुरा लगने लग जाता है , गलत लगने लग जाता है |  वास्तव में रफ़्तार तेज करने के चक्कर में हम आगे पीछे तथा आस पास देखना भूल जाते हैं |
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 सब कुछ   इतना तेजी से चल रहा है की आगे निकलने के बाद उसी   तेजी से हम पीछे नहीं आ पा रहे हैं |  क्योंकि पीछे की भीड़ ने पीछे मुड़ने के रस्ते को ब्लॉक कर  दिया है इसलिए चाहकर भी हम मुड  नहीं पा रे हैं दूसरी एक बात   और इस तेज रफ़्तार ज़िंदगी ने हमे सही को गलत साबित करना सिखाया है |  सही  को गलत साबित करना बड़ा आसान है लेकिन इस आधुनिक युग में  गलत  को गलत   साबित करने के लिए सबूत जूटा  पाना बड़ा मुश्किल है  |  यही वजह है की प्रकृति की सही चीज़ों का दुरूपयोग हम बड़ी सरलता और आसानी से कर रहे हैं  | सही कानूनों का गलत तरीके से उपयोग कर हम अपने आप को तो धोखे में रख ही रहे हैं दूसरो के लिए भी  असमंजस पैदा कर रहे हैं  | अपने थोड़े से लाभ और स्वार्थ के लिए हम   दूसरों की रंगीन ज़िंदगी को रंगहीन बना देते हैं और दूसरे हमारी को   कब हम किसी को मुसीबत में डाल दें कोई हमे कब परेशानी में डाल दे किसी भी बात का अंदाजा   नहीं लगाया जा सकता |
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  जागरूक भी यदि हम हो  रहे हैं तो सही को गलत साबित करने के लिए हो रहे  हैं  गलत को सही करने के लिए नहीं |  गिरगिट की तरह रंग बदलने का चलन इस आधुनिक और नयी दुनिया का रिवाज बनता जा  रहा  है  सच बोलने ,सच का साथ देने, स्पष्ट बोलने, गलती बताने में लोग डरने लगे  है  संशय इतना बढ़ गया है की किसकी बात माने किसकी नहीं किसको सही कहे किसको नहीं परिवार की माने  या बाहर वालों की अपने अनुसार ज़िंदगी जीए तो मुश्किल दूसरों  के अनुसार जीए तो मुश्किल अपने  लिए जिए  तो स्वार्थी  नज़र आते हैं   दूसरों के लिए जीए तो दूसरे अपना स्वार्थ  पूरा करते हैं | आधुनिक जीवन जिए या प्राचीन पुरानी  पीढ़ी को सही बताये या आज की युवा पीढ़ी को मतभेद हर बात में है |
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खान पान, पहनावा, रीती रिवाज  ,धर्म समाज, राजनीति सब कुछ तो मतभेदों में   उलझे हुए है  उलझे भी बालों  के गुच्छे की तरह है क्या आप इस असमंजस को महसूस नहीं कर रहे है ? यदि कर रहे है तो उपाय भी करे  सोच  सकारात्मक बनाये रखें दूसरो में बदलाव लाने  के बजाए अपने आप को बदले अहिंसा प्रेम प्यार और भाईचारे  की बात  करें एक दूसरे की जान लेने के बजाए एक दूसरे की जान बचाने का ईमानदाराना प्रयास करे आधुनिक और प्राचीन सोच में तालमेल बनाने  का हर सम्भव प्रयास करे जीवन के  असमंजस का सबसे आसान और सरल उपाय यही है |

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