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हमारे 'मन' को हमारे दिल को देखने के लिए हमारे पास क्या साधन है ?

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आईना वह शख्स है,जो हमें हमारा अ क् क्ष दिखाता है, प्रतिरूप दिखाता है, चेहरा दिखाता है, प्रतिबिंब दिखाता है| यानी हमारे चेहरे के ऊपरी भागों को दिखाता है| जिन्हें हम अपनी आंखों से नहीं देख पाते हैं| यदि हमें हमारे शरीर के अंदर के भाग देखने हैं तो वह हम एक्स-रे द्वारा देख सकते हैं| और उसके द्वारा हम डॉक्टर की सलाह से पता लगा सकते हैं| हमारा कौन सा अंग सही तरीके से काम कर रहा है, कौन सा काम नहीं कर रहा है| शरीर में कहां परेशानी है? क्या बीमारी है? आईना हमें चेहरे के बारे में सूचित करता है| हमारे चेहरे की बनावट दिखाता है| हमारे चेहरे की सुंदरता, भद्दापन, दर्शाता है| और हम ख़ुद आईना देखकर अपने चेहरे को सुंदर से सुंदर बनाने का प्रयत्न करते हैं| हमारे चेहरे के ऊपरी भाग को हम आईने के द्वारा देख सकते है और शरीर के अंदरूनी भागों को हम एक्सरे मशीन से देख सकते है लेकिन क्या आपने कभी सोचा है हमारे 'मन' को हमारे दिल को देखने के लिए हमारे पास क्या साधन है जी हाँ हम खुद भी अपने मन की परख ठीक तरह से नहीं कर सकते हमारे मन को या तो भगवान परख सकता हैं या फिर हमारा कोई हितेष |

वजह चाहे कुछ भी हो लेकिन सच्चाई को स्वीकार करना एक बहुत बड़ी दुविधा है

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 वजह  चाहे कुछ भी हो लेकिन सच्चाई को स्वीकार करना एक बहुत बड़ी दुविधा है  |  फर्क इस बात से इतना नहीं पड़ता की दूसरे गलत है फर्क इस बात से ज्यादा  पड़ता है की की हम कितने सही है |  दूसरो की कमिँया  हमारे जीवन को इतना प्रभावित नहीं करती जितनी हमारी खुद की |  इंसान वह नहीं होता जो एक हँसते व्यक्ति को रूला दे इंसान तो वह होता है जो एक रोते  हुए व्यक्ति को भी  हंसा दे |   यह जानना भी जरूरी है की हम किसी की वजह से दुखी है या कोई हमारी वजह से भी दुखी तो नहीं है  |  दर्द दूसरो को भी उतना ही होता है जितना हमें होता है |  आँसुओ का मूल्य तो सबके लिए एक जैसा होता है फिर क्यों हमें सिर्फ हमारे ही आँसू  दिखाई देते है दूसरों  के नहीं  ?  अक्सर जब लोग जागरूकता की बात करते है तो अधिकारों के प्रति जागरूक होने की करते है कर्तव्यों के प्रति जागरूक होने की बात कभी नहीं की जाती की भी जाती है तो उस पर इतना गौर नहीं किया जाता जितना अधिकारों के लिए किया जाता है | https://images.app.goo.gl/zwLKA1BZY8Qq5X1c7 नफरत और गुस्से से आज तक किसी का भला नहीं हुआ है नफरत गुस्से ने हमेशा घी में आग का काम किया है  बा

छोटी छोटी सफलताओ से ही बड़ी सफलताएं हासिल की जाती है

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सफलता के मायने हर व्यक्ति के लिए अलग अलग होते है   कोई रिश्तो की सफलता को  सफलता कहता है | कोई व्यवसाय में सफल होने को  |  कोई बच्चो की सफलता चाहता है कोई सच्चो की |  कोई अपने मान सम्मान प्रतिष्ठा को सफलता मानता है,  किसी के लिए  अपने शोक को पूरा करना सफलता है |  कोई प्रसन्ता पूर्वक   सुखी दाम्पत्य जीवन जीने को सफलता मानता है | लेकिन इन सब में एक बात बहुत कॉमन है वह यह कीआज आधुनिकता की इस चकाचोँध  में पैसा कमाने को लोग बहुत बड़ी सफलता मान रहे है |   जबकि पैसा कमा लेने से बड़ी सफलता है कमाए गए पैसे को तथा पैसे के साथ स्वयं को सुरक्षित रख पाना |   https://images.app.goo.gl/8ibpLDgh8ZSzvJSa6  पैसा  कमा लेने  से ज्यादा मुश्किल काम  है पैसा  कमा लेने के बाद आने वाली समस्याओं  का सामना करना  |  क्यों की इसके बाद सच्चे दोस्त बना पाना बड़ा कठिन होगा हाँ सच्चे दुश्मन बनाने में आप बहुत बड़ी सफलता हासिल कर लेंगे |    वास्तव में सफलता का विश्लेषण कर पाना बड़ा जटिल काम है |  क्योकि हर कोई बड़ी सफलता हासिल करने को सफलता मानता  है और इसी क्रम में  हम बड़े सफल लोगों से तुलना कर छोटी सफलताओं  को असफल

ज्ञान लेने से पहले हमे यह समझना अत्यंत आवश्यक है की ज्ञान है क्या ?

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ज्ञान हर व्यक्ति लेना चाहता है  |  ज्ञान के बिना हमारे जीवन का कोई मूल्य नहीं है  | लेकिन असमंजस यह है की कौनसा ज्ञान हमें किस समय लेना चाहिए जो ज्ञान हम ले रहे है वह  हमारे काम का है भी या नहीं ज्ञान की असल परिभाषा क्या है ? यह जाने बिना हम ज्ञान की तलाश में भागते जा रहे है  | इसलिए ज्ञान लेने, देने और दिलाने  से पहले हमे यह समझना अत्यंत आवश्यक है की ज्ञान है क्या ? https://images.app.goo.gl/zB1oPrE1S7az3zno6  वास्तव में  ज्ञान का क्षेत्र काफी विस्तृत है यह एक अथाह महासागर है जिसके लिए हमारा सम्पूर्ण जीवन भी कम हैं जीवन के हर पल में ज्ञान समाया  हुआ है हर पल  कुछ न कुछ सीख अवश्य देकर जाता है | और हर पल की सारी  बातो को सारी  सीखो को हम सीख ले या याद  रख ले यह सम्भव नहीं है | लेकिन पल- पल की ये बातें जिन्हे हम अतीत कहते है कही न कही अनुभव के रूप में हमारे ज्ञान  को बढ़ाने में सहायक होती है  | समय और परिस्थिति के साथ यदि हम अतीत के अच्छे बुरे पलों  को वर्तमान में आत्मसात करना सीख ले तो ये ज्ञान हमारे भविष्य का निर्माता बन सकता है | https://images.app.goo.gl/vrn6Xqvm2rkrZ6XR9

मनुष्य एक प्राकृतिक उपहार है लेकिन मशीनी होता जा रहा है

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मनुष्य एक प्राकृतिक उपहार है |  जिस तरह से प्रकृति की देखभाल करना हमारी ज़िम्मेदारी है उसी तरह हमारी स्वयं  की  देखभाल करना भी हमारी स्वयं की ज़िम्मेदारी है |  आज के इस डिजिटल  युग में हर इंसान मशीनी होता जा रहा है उसने भी मशीनों की तरह अपनी सेवाएं 24 x 7 x 365 कर दी है जिस तरह से मोटर गाड़ियों की   एक्स्पायरि 15 वर्ष होती है 15 वर्षों के बाद वह गाड़ी दिखती तो रहेगी लेकिन सड़क पर चलने लायक नहीं कही जा सकती | https://images.app.goo.gl/cPaj1upqy9qfPNav6  दवाइयों के ऊपर उनकी एक्सपाइरी अंकित होती है वह इसलिए की जिस तरह  मशीनों के  कलपुर्जों की उम्र निश्चित होती है उसके बाद उनका उपयोग करना खतरनाक हो सकता है यही दवाइयों के मामले में भी  होता  है मनुष्य की उम्र निश्चित नहीं है लेकिन पता नहीं क्यों मनुष्य 24 घंटे 365  दिन सेवाएं देकर अपने आप को मशीन बनाए हुए है और अपनी भी एक्सपाइरी डेट तय करवाने और अंकित करवाने पर तुला हुआ है मशीन के कलपुर्जों को  अपने 15 वर्ष के जीवन काल में भी मरम्मत की आवश्यकता होती है और उसके कलपुर्जों की मरम्मत वह स्वयं नहीं करवा सकती इसके लिए उसे किसी और पर निर्भर

कही शिक्षा के लिए समाज तो नहीं बदल रहा है

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शिक्षा समाज को   बदल देती है लेकिन आज शिक्षा के लिए समाज बदल रहा है |   लोगों की शिक्षा के प्रति  जागरूकता बढ़ी है, शिक्षा के साधन बढे हैं, शिक्षण संस्थानों में बढ़ोतरी हुई है, शिक्षा के खर्चों में बढ़ोतरी हुई है ,शिक्षा लेने वालों की संख्या में इजाफा हुआ है, शिक्षा देने वालों की संख्या  कई गुना बढ़ गयी है |  हम बहुत खुश हो जाते हैं जब किसी बड़े शैक्षणिक संसथान में बच्चे का एडमिशन हो जाता है, जब कोई बच्चा बड़ी डिग्रियां हांसिल कर लेता  है |  किसी भी परीक्षा के नतीजे आते हैं और मेरिट लिस्ट में आये हुए बच्चों के फोटो के साथ उनके अंकों के प्रतिशत देखकर हम प्रभावित होते हैं |  होना भी चाहिये क्योंकि बच्चों की रात दिन की लगन और परिश्रम ने उन्हें इस मुकाम तक पहुँचने का अवसर  प्रदान किया है |  लेकिन क्या  शिक्षा के  प्रति इतनी जागरूकता होने के बावजूद शिक्षा के गिरते स्तर  के बारे में आपने कभी गौर किया है |  अवश्य करके देखें क्योंकि हमारी नज़र अक्सर एक  पहलू पर पड़ती है  | https://images.app.goo.gl/JpDRMWXJU8R6bJPW6    बचपन में कहानियों को किताबों  में सभी पड़ते है परन्तु उनकी शिक्षा और संदेश

दुनिया में कहीं कोई चीज़ अपने आप में सम्पूर्ण नहीं होती

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गंगाजल में दुनिया  की सारी गंदगी मिली होने के बावजूद भी उसे शुद्ध माना जाता है क्यों ? क्या आपने कभी सोचा है की ऐसा क्या है गंगाजल में जो उसे साधारण जल से भिन्न बनाता है ? यह गंगाजल की प्रवृत्ति है ,   गंगाजल के प्रति लोगों की आस्था विश्वास है  |  कमल हमेशा कीचड़ में ही खिलता है |  कीचड़ में खिला होने के बावजूद कमल खिला - खिला मुस्कुराता नज़र आता है |     गुलाब की यदि बात की जाए तो कांटो के बीच रहकर भी उसके सुर्खपन में  कभी  कोई कमी  नहीं आती | https://images.app.goo.gl/iEjxUKc9qokE1XyY7   जिस तरह गंगाजल में गंदगी मिलने के बावजूद गंगाजल  अपने गुणों  को नहीं खोता है  |  दूसरी बात  गंदगी उसके साथ मिलने पर भी वह लोगों की नज़र में शुद्ध गंगाजल ही है |  कमल कीचड़ की गंदगी में पलकर बड़ा होता है खिलता है |  वह गंदगी ही उसे पालती है फिर भी वह अपनी पहचान नहीं बदलता |  गुलाब काँटों की संगत में भी दूसरों को  खुशियां बाँटता है क्योंकि काँटे  भी कभी - कभी उसकी रक्षा करते हैं   | https://images.app.goo.gl/d2AF55bTF2q4uWvw6  दुनिया में कहीं कोई चीज़ अपने आप में सम्पूर्ण नहीं होती बल्कि गुण

सोच को बड़ी रखने के लिए घर की पाठशाला में अध्ययन निहायत आवश्यक है |

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                                             पहली पाठशाला घर होती है |  इस पाठशाला की जरूरत बच्चों  से लेकर बड़ों  तक को जीवन भर होती है |   यह दुनिया की ऐसी पाठशाला है जिसमें बार- बार फैल होकर भी सबसे ज्यादा अनुभव कमाया जाता है |  इस लिए घर की पाठशाला में पढना और पढ़ाना दोनों जरूरी है | इसके सबसे अच्छे अध्यापक वो  सभी परिवार के सदस्य होते  है जो एक दूसरे को समझते है, एक दूसरे का मान सम्मान करते है, एक दूसरे के सुख दुःख में शामिल होते है ,सामाजिक सोच रखते है | अपनी और दूसरो की सोच को बदलने की क्षमता रखते है  |  बिना स्वार्थ के इंसानियत दिखाते है  | https://images.app.goo.gl/mv6SfXJyGVg3PreP8   घर की पाठशाला में पढाये गए पाठ विद्यालयों में पढाये जाने वाले पाठो को और भी मजबूती प्रदान करते है | जिस तरह मकान की नींव  मकान को मजबूती प्रदान करती है उसी प्रकार घर की पाठशाला एक विद्यार्थी  जीवन  की नींव होती है लेकिन आज जिस तरह से हम बच्चों  की  शिक्षा के लिए जागरूक हुए है वह जागरूकता नहीं बल्कि उतावलापन है | इस उतावलेपन  में अधिकतर लोग यह भूल रहे है की बच्चो के लिए क्या सही है क्य

रिश्ते सामाजिक चेतना और सामाजिक प्रेरणा के महत्व पूर्ण स्त्रोत होते है

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परिवार को बनाये रखने समाज को दिशा देने समाज की सोच बदलने सभ्य समाज का निर्माण करने के  लिए  रिश्ते  सामाजिक चेतना और सामाजिक प्रेरणा के महत्व पूर्ण स्त्रोत होते है | समाज में अच्छे बुरे दोनों संदेश देने में रिश्तों की अहमियत को नकारा नहीं जा सकता |  हर रिश्ते का अपना एक महत्व होता है, वजूद होता है | रिश्तो के बनने और बिगड़ने का असर परिवार के साथ- साथ समाज पर भी पड़ता है |   माता- पिता उनकी संताने तथा पति - पत्नी ये सबसे नजदीकी रिश्ते होते है |  बाकि रिश्तो की यदि इस आधुनिक युग में बात की जाये तो अन्य सभी रिश्ते दूर के रिश्ते हो गए है| आज रिश्तो में दूरियां बढ़ जाने की वजह से हम सही मायने में जिंदगी नहीं जी पा  रहे है जिंदगी को सही मायने में जीने के लिए रिश्तो को सहेजना निहायत जरूरी है | https://images.app.goo.gl/fC4Fk8HEfcWr1pTG8   परिवार जैसी  विस्तृत और सामाजिक संस्था बड़े- बड़े घरों से सिमट  कर 2 BHKके छोटे से फ्लेट में आ गई है | सीमित परिवार के अर्थ का हमने अनर्थ कर दिया है |  परिवार नियोजन के लिए अपनाये गए इस कार्यक्रम को अपना कर हमने जनसंख्या नियंत्रण में तो अपना योगदान दे द

जरूरी है संतुष्ट करने और संतुष्ठ होने का गुण

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कुछ लोग  लोगों को  संतुष्ट नहीं कर  पाने की वजह से अपने मन को दुखी कर लेते हैं  | तो कुछ लोग लोगों से संतुष्ट नहीं हो पाने की वजह से अपने आप को दुखी रखते हैं |  दुखी होने की दोनों ही वजह गलत है |  व्यक्ति में संतुष्ट करने और संतुष्ठ  होने का गुण होना जरूरी  है | https://images.app.goo.gl/1G73wCchj9Lx5YVK7   जीवन में कईअवसर ऐसे आते हैं जब हम बेवजह संतुष्ट नहीं होते हैं और  दुखी रहते हैं जबकि  वजह कोई बड़ी नहीं होती है |  छोटी छोटी बातों  की असंतुष्टि  से मन को दुखी करने की कोई आवश्यकता  नहीं होती है  ये तो जीवन भर चलने वाली कहानी होती है |  इसके लिए हमे दूसरो  को संतुष्ट करने अपनी बात को सही तरीके से नहीं कह  पाने किसी ऐसे काम को  ना नहीं कह पाने जिसमे किसी  की नाराज़गी की संभावना ही  नहीं होती उसके लिए भी हम ना  नहीं कह पाते हैं  | https://images.app.goo.gl/ojgtq5JbNwcdv9oj8 यही वजन हम दिल पर रखकर असंतुष्ट रहते हैं की इसका भी कोई बुरा मान लेगा तो,   कोई ऐसा सोच लेगा तो, कोई नाराज़ हो जायेगा तो, कोई गलत समझ लेगा तो, कोई ना  नहीं सुन पाएगा तो , किसी ने हम में कोई

धर्म का अर्थ धर्म का असली रूप स्वार्थ की बेड़ियाँ

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Why Ramadan is celebrated? What is the difference between Ramadan and Ramzan? What can't you do during Ramadan? Can you say I love you during Ramadan?        बहनो भाइयो रमजान का त्यौहार 23  अप्रैल  2020  से  23 मई 2020  तक मनाया जाएगा लोगो का मानना है की   covid  19 ने    इस त्यौहार की रंगत फीकी कर दी     परन्तु बहनो भाइयों  त्यौहार कोई भी हो उसका मकसद  प्रेम, भाईचारा ,एकता बनाये रखना होता है | और प्रेम , भाईचारे  दिखाने के लिए तो यह समय अबसे ज्यादा महत्व पूर्ण है | दोस्तों   रमजान का महीना  मुस्लिम समुदाय के लिए इबादत का महीना होता प्रार्थना का महीना होता है | इसीलिए लोग इस महीने में बुरे  काम करने बुरा बोलने बुरे लोगों  की संगत करने से बचते  है| ताकि  अल्लाह की पैगंबर की इबादत ठीक से कर सके | इसी लिए लोग इस पुरे  में झूठ बोलने गलतियां करने किसी को ठेस पहुंचाने से बचते है | यानी बोलने चलने से लेकर खान पान तथा काम धंधे में भी गलत तरिके  परहेज है | यानी संयम बरतते है | वास्त

आधुनिक और प्राचीन जीवन का असमंजस

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आज के इस आधुनिकरण से ज़िंदगियाँ जहाँ रंगीन बन रही है वही रंगहींन  भी हो रही  है |  कुछ पल, कुछ समय ,कुछ दिनों  लिए ज़िंदगी रंगीन लगने लगती है लेकिन कुछ ही पलों, कुछ ही समय, कुछ ही दिनों में वही रंगीनियां फीकी पड  कर रंगहीन हो जाती है |  ज़िंदगी के  उतरने और चढ़ने का आभास यह  तेज भागती , दौड़ती, इठलाती ,बलखाती ज़िंदगी हमे करा ही देती है |  वजह है की इस आधुनिक युग में सही गलत का अंदाज लगा पाना बड़ा मुश्किल सा लगने लगा है |  अच्छे बुरे की पहचान करने में असमंजस हो गया है |  एक पल के लिए कुछ अच्छा लगने लगता है  अगले ही पल वही बुरा लगने लग जाता है , गलत लगने लग जाता है |  वास्तव में रफ़्तार तेज करने के चक्कर में हम आगे पीछे तथा आस पास देखना भूल जाते हैं | https://images.app.goo.gl/Tj6YLcXP1jTqNY3Z8  सब कुछ   इतना तेजी से चल रहा है की आगे निकलने के बाद उसी   तेजी से हम पीछे नहीं आ पा रहे हैं |  क्योंकि पीछे की भीड़ ने पीछे मुड़ने के रस्ते को ब्लॉक कर  दिया है इसलिए चाहकर भी हम मुड  नहीं पा रे हैं दूसरी एक बात   और इस तेज रफ़्तार ज़िंदगी ने हमे सही को गलत साबित करना सिखाया है |  सही  को गलत साब

कहां तक उचित है स्कूली शिक्षा को नैतिकता के लिए जिम्नेदार ठहराना

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एक सभ्य समाज के लिए नैतिकता की बात करना समाज के हर वर्ग के  उत्थान के लिए जरूरी है | नैतिकता का प्रश्न जब भी खड़ा होता है नेता -अभिनेता, स्त्री- पुरुष, ईमानदार- बेईमान, अपराधी- साहूकार, ज्ञानी- अज्ञानी सभी अपने आप को नैतिक बताने और साबित करने में जुट जाते है | और यदि कुछ अनैतिक लगता भी है तो हम सभी मिलकर स्कूली शिक्षा को नैतिकता के लिए जिम्मेदार ठहराते है |  क्योंकि हर कोई यह मानता  है की   नैतिकता सीखाने की जिम्मेदारी शिक्षक वर्ग की और सीखने  की विद्यार्थियों की | https://images.app.goo.gl/xgssKtE2kquPd4S89   हम छोटे- छोटे  बच्चो से नैतिकता की अपेक्षा रखते है क्या बड़ो  को नैतिकता सीखने  की आवश्यकता नहीं है ? क्या बड़ो को अपने अंदर झाँकने की आवश्यकता नहीं है  की हम कितने नैतिक है ? जब कोई भी व्यक्ति स्वयं कोई कार्य करता है तब वह नैतिकता और अनैतिकता के मुद्दे पर इतना गंभीर नहीं होता लेकिन जब वही  कार्य  कोई दूसरा करता है तब हमें  नैतिक अनैतिक का आभास होता है | ऐसा क्यों ? जरा सोचिए झूठ सच करना या गाली गलोच करना बच्चे घर या आस पास के माहौल से सीखते है और  हम सुधार  की अपेक्षा स्