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तन मन धन सब हे तेरा

                                             तन- मन -धन ' तन- मन -धन सब हे तेरा ' भजन और गीत जब हम सुनते हे उस समय हर व्यक्ति की  सोच वैसी ही  बन जाती हे | और वाकई उस समय हर व्यक्ति का व्यव्हार भी वैसा ही हो जाता हे | और अपने आप को प्रदर्शित भी वैसा ही करने लगता हे | लेकिन जैसे ही भजन या गीत का असर ख़त्म होने लगता हे हमे न तन का अर्थ पता होता हे न मन का  और धन की स्थिति के नाम पर बैंक बैलेंस nil हो जाता हे | सारा धन जो हमारे पास था निर्धनों में बंट  गया बाकि  बचा खुचा भगवान के श्री चरणों में अर्पण कर  दिया और गा दिया ' तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा ' हो गया तन- मन- धन सब हे  तेरा |                                                             यह  स्थिति सिर्फ हमारी ही नहीं बल्कि उन बड़े - बड़े भक्तो की भी हे जो बड़े - बड़े छापे  तिलक लगाते  हे और सत्संगो में आदर्श की बाते कर दुनिया से तन-  मन -धन अर्पण करवाते हे चाहे खुद करे या न करे और ज्यों ही सत्संग  का असर ख़त्म होता हे हम भी तेरी- मेरी, सच- झूट, नफा- नुक्सान ,लड़ाई -झगड़ा ,गाली -गलोच की सत्संग  शुरू कर देते हे | ठीक