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जीवन में क्षमा का महत्व

                                              क्षमा गलतियों का अहसास  कराना  और फिर हंसते-हंसते माफ कर देना क्षमा कहलाता है|  क्षमा करने का गुण हर व्यक्ति में नहीं होता लेकिन जिस व्यक्ति में यह गुण होता है वह दुनिया का सबसे अमीर व्यक्ति होता है|  जो व्यक्ति क्षमा करना जानता है वह कभी भी किसी का बुरा नहीं करता|  वह भगवान का रूप होता है वह नहीं चाहता कि दुनिया में अपराध हो, वह नहीं चाहता दुनिया से भाई चारा खत्म हो, वह नहीं चाहता पड़ोसी - पड़ोसी का दुश्मन बने, वह नहीं चाहता कि लोगों के जीवन में तनाव बढ़े |  जरा सोच कर देखिए जब आप से कोई गलती हुई हो और आप इस गलती के लिए कभी भगवान से प्रार्थना करते हैं कभी अपने इष्ट मित्रों रिश्तेदारों से एक गलती दोबारा न करने का  वादा  करते हैं|  आप चाहते हैं कि बस एक बार मुझे क्षमा मिल जाए फिर मैं ऐसी गलती दोबारा नहीं करुंगा और यदि किसी तरह से लोग आपको क्षमा  कर देते हैं सोच कर देखिए क्या प्रतिक्रिया आपके मन में होती होगी|  अापकी खुशी का ठिकाना नहीं रहता आप तनावमुक्त हो जाते हैं, आप आगे गलती न करने की कसम खाते हैं, आपकी एक गलती न जाने कितने लोगों को ऐस

जीवन का सुख

                                           सुख  जीवन में आज हर व्यक्ति घुटन महसूस कर रहा है| भागदौड़ और टेंशन की जिंदगी में कई ऐसे कारण है जो हर व्यक्ति की इस घुटन को बढ़ा रहे हैं| कुछ कारण ऐसे हैं जो आम जीवन का हिस्सा बन गए हैं|  हर किसी को हम कहते हुए सुन सकते हैं, समय नहीं है, आर्थिक समस्या चल रही है, हर महीने डॉक्टर का बिल भरना पड़ता है, नौकरी का भरोसा नहीं है, बिजनेस बदलना चाहता हूँ , बच्चों की लाइफ का सवाल है उन्हें अच्छी शिक्षा दिलाना चाहता हूं, पति पत्नी दोनों कमाते हैं फिर भी खर्चा नहीं चल रहा है, किस्मत साथ नहीं दे रही है,मैं तो दुखी हो गया हूँ क्या करूँ? दोस्तों यह वो कारण है जिनसे कोई व्यक्ति अछूता नहीं है चाहे अमीर हो या गरीब हर व्यक्ति अपने आप को सुविधा संपन्न बनाना चाहता है |  हर व्यक्ति चाहता है उसके बच्चों का करियर बने|  हर व्यक्ति चाहता है उसके पास  अथाह धन दौलत हो |  सुविधा संपन्न होना कोई बुरी बात नहीं है | बच्चों का कैरियर बनाना  बहुत अच्छी बात है  अथाह धन दौलत होना भी कोई बुरी बात नहीं है |  बुरा सिर्फ इसमें इतना सा है कि पहले लोग दाल रोटी का मतलब अपनी था

jeevan me kathni or karni ka fark

                                 कथनी और करनी अक्सर हम बात करते हैं कि हमारी कथनी और करनी एक ही होनी चाहिए।" कथनी और करनी" का अर्थ है जैसा हम बोलते हैं वैसा ही करें। अक्सर यह बात कहते हुए सुना जाता है की कथनी और करनी एक ही होनी चाहिए यानी जो हम कहते हैं वैसा ही हमें करना चाहिए लेकिन यह अपेक्षा हम हमेशा दूसरों से करते हैं चाहे हमारी कथनी और करनी में कितना ही फर्क क्यों ना हो लेकिन दूसरे की कथनी और करनी में फर्क नहीं होना चाहिए। सवाल यह है कि हमारी कथनी और करनी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रुप से कई कारणों से भिन्न हो जाती है। कई बार हम चाह कर भी वह नहीं कर पाते हैं जो हम बोल देते हैं। कारण यह है कि बोलने में हमें सिर्फ जुबान हिलानी पड़ती है और जब हम उसे करने बैठते हैं तब हमारे सामने कई सारी बातें आती है जिसके बारे में हमने सोचा भी नहीं होता। यही कारण है कि हमें कोई भी बात बोलने से पहले उसे करने में आने वाली समस्याओं के बारे में विचार करना चाहिए। लेकिन कई बातें ऐसी होती है जो हम जब काम शुरु करते हैं उस समय हमारे सामने आती है उससे पहले दूर-दूर तक ऐसी बातों या कारणों के बारे में

जीवन का कटू सत्य

                   जीवन की सच्चाई हम जीवन में बिना सोचे समझे सिर्फ एक दूसरे को दोष देते रहते हैं दूसरों से हमेशा अपेक्षा रखते हैं कि सच बोले, लालची नहीं हो, मन में स्वार्थ ना हो, किसी का बुरा नहीं सोचे, कभी किसी का दिल नहीं दुखाए, किसी से लड़ाई झगड़ा ना करे, बेईमानी का तो सवाल ही नहीं उठता चरित्र तो जीवन की सबसे बड़ी पूंजी है।               इन सब बातों के लिए अपेक्षा रखना और चिंतित होना लाजमी है क्योंकि इन्ही गुण और अवगुणों के आधार पर एक अच्छे समाज का निर्माण होता है। लेकिन बात हमेशा तर्कसंगत करनी चाहिए क्या यह सच नहीं है? कि यह अपेक्षा हम सिर्फ दूसरों से करते हैं क्या कभी अपने आप के अंदर भी झांककर देखा है? कि कहीं हमारे अंदर इन सब गुणों की छाया तो नहीं है क्या हमारी कथनी और करनी में बहुत ज्यादा अंतर तो नहीं है? क्या दूसरे भी हमसे ही अपेक्षा की उम्मीद तो नहीं कर रहे हैं? दोस्तों  यह कटु सत्य है इस दुनिया में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है जो इन अवगुणों से अछूता हो। मनुष्य गलतियों का पुलिंदा है हर इंसान में कोई ना कोई कमी अवश्य मिलेगी। जिस व्यक्ति में यह कमियां नहीं होगी उसे हम भगवान कह

जीवन में माँ का महत्व

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                     मां ने बेटे  को स्कूल में भर्ती किया पढ़ाया लिखाया लायक बनाया बेटे ने भी माँ के नाम पत्र लिखकर कैसे अपना फर्ज पूरा किया? अपनी पढ़ाई लिखाई और सभ्यता का कैसा परिचय दिया? पढ़िए  मेरी प्यारी मां,                     प्रणाम,                                 मुझे पता है मां,  जब तुम मुझे पहली बार स्कूल ले गई थी पीटते हुए, और फिर मैंने तुम्हारी बात मान ली थी। और आज तुम्हारी वजह से मैं अच्छे मुकाम पर हूं। अब तुम भी मेरी बात मान लो जन्नत नसीब होगी जन्नत। मैं तुझे वहां राजी खुशी अपनी कार से छोड़ कर आऊंगा ।लोग बड़े  निर्दयी होते हैं मां लेकिन मैं इतना निर्दयी नहीं हूं। कैसे कैसे बेटे होते हैं आजकल के ? जनम देने वाली माँ के साथ मारपीट तक कर देते हैं !कितनी बुरी बात है? परंतु तुम्हें तो पता है मैं ऐसा बेटा नहीं हूँ माँ मैं  ऐसा कभी नहीं करूंगा   नहीं करूंगा।  तुम्हे तो पता है मुझे यह सब पसंद नहीं है। तुम्हें तो अपने बेटे पर गर्व होना चाहिए|  कल ही मैंने अखबार में पढ़ा था एक बेटे ने पत्नी की शिकायत पर अपनी मां को भूखा प्यासा कमरे में 3 दिन तक कैद रखा। कैसे - कैसे लोग