jeevan me kathni or karni ka fark

                                 कथनी और करनी

अक्सर हम बात करते हैं कि हमारी कथनी और करनी एक ही होनी चाहिए।" कथनी और करनी" का अर्थ है जैसा हम बोलते हैं वैसा ही करें। अक्सर यह बात कहते हुए सुना जाता है की कथनी और करनी एक ही होनी चाहिए यानी जो हम कहते हैं वैसा ही हमें करना चाहिए लेकिन यह अपेक्षा हम हमेशा दूसरों से करते हैं चाहे हमारी कथनी और करनी में कितना ही फर्क क्यों ना हो लेकिन दूसरे की कथनी और करनी में फर्क नहीं होना चाहिए। सवाल यह है कि हमारी कथनी और करनी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रुप से कई कारणों से भिन्न हो जाती है। कई बार हम चाह कर भी वह नहीं कर पाते हैं जो हम बोल देते हैं। कारण यह है कि बोलने में हमें सिर्फ जुबान हिलानी पड़ती है और जब हम उसे करने बैठते हैं तब हमारे सामने कई सारी बातें आती है जिसके बारे में हमने सोचा भी नहीं होता। यही कारण है कि हमें कोई भी बात बोलने से पहले उसे करने में आने वाली समस्याओं के बारे में विचार करना चाहिए। लेकिन कई बातें ऐसी होती है जो हम जब काम शुरु करते हैं उस समय हमारे सामने आती है उससे पहले दूर-दूर तक ऐसी बातों या कारणों के बारे में हम सोच भी नहीं सकते और जब हम इस कारण की वजह से हमारी कही गई बात को पूरा नहीं कर पाते तो हमारी कथनी और करनी में फर्क नजर आता है दोस्तों कथनी और करनी का फर्क हमें सिर्फ दूसरों में हीं नजर आता है जबकि यह स्थिति सभी के साथ होती है। कुछ लोग इसे मान लेते हैं कुछ लोग इसे नहीं मानते हैं जो लोग नहीं मानते हैं यह कहकर पल्ला झाड़ देते हैं, की जिस पर बीतती है वह ही जानता है लेकिन वो ये  बात भी सिर्फ अपने आप पर ही लागू करते हैं क्योंकि वह यह भी मानने को तैयार नहीं होते कि उनकी वजह से दूसरों पर क्या बीतती है ऐसे लोग सिर्फ एक ही पहलू पर बात करते हैं जो उनके पक्ष में होता है दूसरा पहलू उन्हें नजर नहीं आता जब तक हम सिक्के के दोनो पहलू नहीं देखेंगे हमें पूरा मंजर नजर नहीं आएगा और हम एक पहलू पर ही बात करते रहेंगे यही कारण है कि अधिकतर लोगों की कथनी और करनी में फर्क होता है चाहे कोई इसे माने या ना माने पर अधिकतर लोगों को सिर्फ वही याद रहता है जो उन पर बीतती है दूसरों पर क्या बीती होगी उसे वह नजर अंदाज कर देते हैं हम पर जब बीतती है तो दूसरों पर भी बीती होगी यह सर्व माननीय सत्य है जब हमें दूसरे की कथनी और करनी में फर्क नजर आता है तो यह पता है कि दूसरों को भी हमारी कथनी और करनी में फर्क नजर आता होगा लेकिन कोई भी इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं होता तर्क यह है कि हमारी कथनी और करनी में अक्सर फर्क होता है जिसे मानने का साहस बहुत कम लोग कर पाते हैं और हम पर बीती है तो दूसरों पर भी बीतती होगी यह हमें हमेशा मानकर चलना चाहिए।

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