मनुष्य एक प्राकृतिक उपहार है लेकिन मशीनी होता जा रहा है

मनुष्य एक प्राकृतिक उपहार है |  जिस तरह से प्रकृति की देखभाल करना हमारी ज़िम्मेदारी है उसी तरह हमारी स्वयं  की  देखभाल करना भी हमारी स्वयं की ज़िम्मेदारी है |  आज के इस डिजिटल  युग में हर इंसान मशीनी होता जा रहा है उसने भी मशीनों की तरह अपनी सेवाएं 24 x 7 x 365 कर दी है जिस तरह से मोटर गाड़ियों की   एक्स्पायरि 15 वर्ष होती है 15 वर्षों के बाद वह गाड़ी दिखती तो रहेगी लेकिन सड़क पर चलने लायक नहीं कही जा सकती |
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 दवाइयों के ऊपर उनकी एक्सपाइरी अंकित होती है वह इसलिए की जिस तरह  मशीनों के  कलपुर्जों की उम्र निश्चित होती है उसके बाद उनका उपयोग करना खतरनाक हो सकता है यही दवाइयों के मामले में भी  होता  है मनुष्य की उम्र निश्चित नहीं है लेकिन पता नहीं क्यों मनुष्य 24 घंटे 365  दिन सेवाएं देकर अपने आप को मशीन बनाए हुए है और अपनी भी एक्सपाइरी डेट तय करवाने और अंकित करवाने पर तुला हुआ है मशीन के कलपुर्जों को  अपने 15 वर्ष के जीवन काल में भी मरम्मत की आवश्यकता होती है और उसके कलपुर्जों की मरम्मत वह स्वयं नहीं करवा सकती इसके लिए उसे किसी और पर निर्भर होना पड़ता है |
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 सोच कर देखें क्या मनुष्य को उसके इतने लम्बे जीवन काल में  अपने अंगों की मरम्मत की आवश्यकता नहीं होती क्या इसके लिए उसे मशीन की तरह  किसी और पर निर्भर होने की आवश्यकता है क्या यह सोचने वाली बात नहीं है की हम अपने बच्चों को  भी 24 घंटे 365 दिन वाली मशीनी ज़िन्दगी देने जा रहे हैं  ?याद रखें  आप के स्वास्थ्य की देखभाल आप स्वयं जितनी सही तरीके से कर सकते है उतनी अच्छी तरह से कोई और नहीं कर सकता यदि आप अपने स्वास्थ्य की देखभाल दूसरों के भरोसे छोड़ रहे है तो आप गलती कर रहे है अपने स्वास्थ्य का ध्यान स्वयं रखें  शरीर  को मशीन नहीं बनाये जीवन को आसान बनाने के लिए शरीर का स्वस्थ होना निहायत जरूरी है इसलिए कहा  जाता है स्वास्थ्य ही सबसे बड़ी दौलत है |

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