रिश्ते सामाजिक चेतना और सामाजिक प्रेरणा के महत्व पूर्ण स्त्रोत होते है

परिवार को बनाये रखने समाज को दिशा देने समाज की सोच बदलने सभ्य समाज का निर्माण करने के  लिए  रिश्ते  सामाजिक चेतना और सामाजिक प्रेरणा के महत्व पूर्ण स्त्रोत होते है | समाज में अच्छे बुरे दोनों संदेश देने में रिश्तों की अहमियत को नकारा नहीं जा सकता |  हर रिश्ते का अपना एक महत्व होता है, वजूद होता है | रिश्तो के बनने और बिगड़ने का असर परिवार के साथ- साथ समाज पर भी पड़ता है |   माता- पिता उनकी संताने तथा पति - पत्नी ये सबसे नजदीकी रिश्ते होते है |  बाकि रिश्तो की यदि इस आधुनिक युग में बात की जाये तो अन्य सभी रिश्ते दूर के रिश्ते हो गए है| आज रिश्तो में दूरियां बढ़ जाने की वजह से हम सही मायने में जिंदगी नहीं जी पा  रहे है जिंदगी को सही मायने में जीने के लिए रिश्तो को सहेजना निहायत जरूरी है |
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  परिवार जैसी  विस्तृत और सामाजिक संस्था बड़े- बड़े घरों से सिमट  कर 2 BHKके छोटे से फ्लेट में आ गई है | सीमित परिवार के अर्थ का हमने अनर्थ कर दिया है |  परिवार नियोजन के लिए अपनाये गए इस कार्यक्रम को अपना कर हमने जनसंख्या नियंत्रण में तो अपना योगदान दे दिया लेकिन   इसका दूसरा पहलू  देखे तो  हमने अपने आप को हम और हमारे दो तक सीमित कर दिया |  परिवार नियोजन का अर्थ जनसंख्या नियंत्रण से है  | रिश्तो के नियंत्रण से नहीं  | हमने हम और हमारे दो के इस श्लोगन को इस कदर अपनाया की उठते बैठते सोते जागते अब हम सिर्फ बात करते है हम और हमारे दो की |  चाहे वो पढ़ाई लिखाई  हो शादी ब्याह हो हारी बीमारी हो दुःख तकलीफ भी हमे हम और हमारे दो की ही दिखाई देती है| किसी घटना की हकीकत भी हमे तभी समझ में आती है जब वो हम और हमर दो के साथ होती है |  घूमना- फिरना खाना- पीना भी हमे हम और हमारे दो के साथ ही अच्छा लगता है |
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  सुख सुविधाओं की यदि बात की जाये तो पहले हम और हमारे दो की सुख सुविद्याओ पर हमारा ध्यान जाता है तारीफों या अच्छाइयों  की यदि बात की जाये तो भी हम परिवार नियोजन के श्लोगन तक ही सीमित  है |  दूसरो  के द्वारा किये गए अच्छे कार्यो की प्रसंशा को भी हमने हम और हमारे दो के दायरे से बहार कर दिया है |  परिवार नियोजन का यह श्लोगन जनसंख्या नियंत्रण की दृष्टि से अच्छा है लेकिन हमने तो इससे अपनी सोच को ही नियंत्रित कर लिया है  |   समस्या तब और खड़ी हो जाती है जब यही हमारे दो बड़े होकर अपनी सोच को नियंत्रित करने की कोशिश करते है और अपना परिवार माता - पिता से अलग करके, अपनी सोच माता- पिता से अलग करके, अपना खान- पान माता- पिता से  अलग  करके अपने बच्चो की ख्वाइशे पूरी करने  के लिए माता- पिता के दिलों को ठेस पहुंचाते  है और 2 BHK के फ्लेट से निकल कर  1BHK के छोटे फ्लेट में भी रहना स्वीकार कर | परिवार को तो  छोटा कर ही  लेते है ,सोच को भी  छोटा कर लेते है  |
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 प्राकृतिक रिश्तो को भूल कर हम सोशल मिडिया के इस दौर में हम और हमारे दो की उपलब्धियों ,बर्थडे , सेर सपाटे के मेसेज भेजने में व्यस्त हो जाते है  |  प्राकृतिक रिश्तो को भूल कर हम अनगिनत रिश्ते बनाते है एक से एक उच्च कोटि के संदेश हम पढ़ते और पढ़ाते है |  लेकिन कितने लोग है जो इन संदेशो पर अमल करके अपने प्राकृतिक रिश्तो को सहेज पाते  है  | रिश्तो को सहेज कर समाज में प्रेरणा पुंज बनने की आज महति  आवश्यकता है | अनगिनत रिश्ते हम बनाते है और बने बनाये रिश्तों को हम भूल जाते है रिश्तो की कैसी विडंबना है यह | क्या सही मायने में रिश्तो को भुला कर जीवन को जिया जा सकता है ?



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