पहली पाठशाला घर होती है | इस पाठशाला की जरूरत बच्चों से लेकर बड़ों तक को जीवन भर होती है | यह दुनिया की ऐसी पाठशाला है जिसमें बार- बार फैल होकर भी सबसे ज्यादा अनुभव कमाया जाता है | इस लिए घर की पाठशाला में पढना और पढ़ाना दोनों जरूरी है | इसके सबसे अच्छे अध्यापक वो सभी परिवार के सदस्य होते है जो एक दूसरे को समझते है, एक दूसरे का मान सम्मान करते है, एक दूसरे के सुख दुःख में शामिल होते है ,सामाजिक सोच रखते है | अपनी और दूसरो की सोच को बदलने की क्षमता रखते है | बिना स्वार्थ के इंसानियत दिखाते है |
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घर की पाठशाला में पढाये गए पाठ विद्यालयों में पढाये जाने वाले पाठो को और भी मजबूती प्रदान करते है | जिस तरह मकान की नींव मकान को मजबूती प्रदान करती है उसी प्रकार घर की पाठशाला एक विद्यार्थी जीवन की नींव होती है लेकिन आज जिस तरह से हम बच्चों की शिक्षा के लिए जागरूक हुए है वह जागरूकता नहीं बल्कि उतावलापन है | इस उतावलेपन में अधिकतर लोग यह भूल रहे है की बच्चो के लिए क्या सही है क्या गलत है ?
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शिक्षा दिलाने की इस अंधी दौड़ में जो बचपन घर की पाठशाला में बितना चाहिये उसे स्कूली बसों और स्कूली भवनों में बिताने पर मजबूर कर रहे है | जो बचपन मिट्टी की सुगंध में बिताना चाहिए उसे चमचमाती टाइलों की कठोरता में बितवाना चाहते है | जो बचपन माता की गोदी में चुलबुले पन में बितना चाहिये वो स्कूली किताबों में बीत रहा है |
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क्या यह कटु सत्य नहीं है कि छोटे - छोटे बच्चो को बिना नित्य कर्म किये बिना नींद पूरी किये माता- पिता उन्हें स्कूलों में पिंजरे के पंछियो की तरह कैद कर के आ जाते है ? क्या यह कटु सत्य नहीं है की अधिकतर माता- पिता इसे अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा का सूचक मान रहे है ? क्या यह सच नहीं है की बड़े स्कूलों में बच्चो को पढाना स्टेटस सिंबल बन गया है ? क्या यह सच नहीं है की हम बच्चों से उनकी क्षमता को पहचाने बिना उनसे जरूरत से ज्यादा अपेक्षाएं और उम्मीदे पाले हुए है ? क्या यह सच नहीं है की पड़ौसी के बच्चे के साथ बच्चे के खेलने में लोग कतराने लगे है ? क्या यह सच नहीं है की हर माता पिता अपने बच्चो के भविष्य को लेकर जरूरत से ज्यादा तनाव झेल रहे है ?
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वह सिर्फ इस लिए की की हम बच्चो की क्षमता पहचाने बिना दूसरो के बच्चे से उसकी तुलना कर रहे है |वह सिर्फ इस लिए की हम अपनी सोच को नहीं बदलना चाहते है | दूसरा आज हम बच्चे की कामयाबी सिर्फ उसके स्कूली मार्क्स को समझ रहे है | जो एक भेड चाल बन चुकी है| सिर्फ स्कूली मार्क्स किसी भी बच्चे की प्रतिभा का सही आकलन नहीं है | दुनिया में आज भी कई उदाहरण ऐसे मिल जाएंगे जिन्हे पढ़ाई में अव्वल आने पर भी जीवन में बड़ी कामयाबी नहीं मिली | कई लोग ऐसे मिल जाएंगे जो साधारण पढ़ाई लिखाई के बावजूद भी बड़ी सफलता हासिल करने में कामयाब रहे | बड़ी कामयाबी के लिए किताबी ज्ञान के साथ साथ सोच को भी बड़ी रखना जरूरी है | सोच को बदलना जरूरी है और सोच को बड़ी रखने के लिए घर की पाठशाला में अध्ययन निहायत आवश्यक है |
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