शिक्षा समाज को बदल देती है लेकिन आज शिक्षा के लिए समाज बदल रहा है | लोगों की शिक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ी है, शिक्षा के साधन बढे हैं, शिक्षण संस्थानों में बढ़ोतरी हुई है, शिक्षा के खर्चों में बढ़ोतरी हुई है ,शिक्षा लेने वालों की संख्या में इजाफा हुआ है, शिक्षा देने वालों की संख्या कई गुना बढ़ गयी है | हम बहुत खुश हो जाते हैं जब किसी बड़े शैक्षणिक संसथान में बच्चे का एडमिशन हो जाता है, जब कोई बच्चा बड़ी डिग्रियां हांसिल कर लेता है | किसी भी परीक्षा के नतीजे आते हैं और मेरिट लिस्ट में आये हुए बच्चों के फोटो के साथ उनके अंकों के प्रतिशत देखकर हम प्रभावित होते हैं | होना भी चाहिये क्योंकि बच्चों की रात दिन की लगन और परिश्रम ने उन्हें इस मुकाम तक पहुँचने का अवसर प्रदान किया है | लेकिन क्या शिक्षा के प्रति इतनी जागरूकता होने के बावजूद शिक्षा के गिरते स्तर के बारे में आपने कभी गौर किया है | अवश्य करके देखें क्योंकि हमारी नज़र अक्सर एक पहलू पर पड़ती है |
बचपन में कहानियों को किताबों में सभी पड़ते है परन्तु उनकी शिक्षा और संदेश बहुत कम लोग अमल में लाते है | आज चाहे कोरोना महामारी से लड़ना हो, परिवार , पड़ोस ,समाज की घटना हो , राजनिती हो या बॉलीवुड व्यापर हो या एजुकेशन अपराध हो या परमार्थ हर जगह इन कहानियों के छोटे छोटे संदेश और शिक्षाएं परिवर्तन ला सकते है | जो बड़े -बड़े आंदोलनों से अब तक नहीं हो पाया | बस जरूरत है अमल करने की जो काम सुई कर सकती है उसके लिए तलवार की जरूरत नहीं होती | दूसरे पहलू को हम हमेशा नज़रअंदाज करते आये हैं | दूसरा पहलू यह है की जितना हल्ला आज शिक्षा लेने देने और दिलाने के नाम पर हो रहा है उसके नतीजे इसके विपरीत आ रहे हैं | मानवता और नैतिकता रसातल में जा रही है | वास्तव में हम शिक्षा का सही अर्थ नहीं समझ पा रहे हैं शिक्षा का अर्थ समझना अति आवश्यक है | शिक्षा का असली अर्थ है सामूहिक हित में काम करना ,सामूहिक मूल्यांकन करना ,सामाजिक कुरीतियों को रोकना, समाज में भाईचारा और एकता बनाए रखना ,गुनाहो अत्याचारों को रोकना और भी वह सब कुछ जो सामूहिक रूप से समाज के हित में है | यही शिक्षा का अलख जगाने की असली परिभाषा है| वास्तव में हम कर भी यही रहे हैं लेकिन फर्क सिर्फ इतना है हम इसे सामूहिक हित में नहीं कर रहे हैं | अधिकतर लोग इसे अपने और अपने बच्चों के हित में करने में व्यस्त हैं यही हमारी गलत सोच बन गयी है | जिस दिन हम इस सोच को समूहिक बना लेंगे प्रकृति भी मुस्कुराती नजर आएगी घी दूध की नदियाँ बहती हुई प्रतीत होगी हर मुँह में घी शक़्कर नजर आएगी |
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काम सिर्फ हमारे बच्चो को शिक्षित करने से नहीं चलेगा भविष्य सिर्फ हमारा और हमारे बच्चों का सवारने का अर्थ शिक्षा नहीं | हमे और हमारे बच्चों को भी इसी समाज में रहना है , इसी में खेलना है, इसी संस्कृति को अपनाना है, इसी माहौल में ढलना है, सोच कर देखें यदि शिक्षा का स्तर इतना बड़ा है तो क्यों हम अपने बच्चों को पडोसी के बच्चों के साथ खेलने जाने में कतराने लगे हैं ? क्यों हम अपने बच्चों को घर के बाहर कदम रखने पर घबराने लगे हैं ? क्यों हमारा विश्वास टूटता सा नजर आ रहा है ? फर्क यह पड़ रहा है की शिक्षा से समाज बदलता है हमने इसका उल्टा ही कर दिया है समाज ने शिक्षा को बदल दिया है | वास्तव में हमने शिक्षा को ही बदल दिया है |
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पहला तो ये की हम शिक्षा को सामूहिक हित नहीं मान रहे हैं दूसरा यह की शिक्षा का अर्थ सिर्फ पैसा कमाने का साधन हो गया है | देने वालों के लिए, लेने वालों के लिए, यहाँ तक की दिलाने वालों के लिए भी | क्योकि शिक्षा दिलाने वाले अदिकतर लोग शिक्षा सिर्फ इस लिए दिला रहे है की उनका बच्चा ऐसी शिक्षा ग्रहण करे जिससे आगे जाकर वह खूब पैसा कमाए देश के प्रति उसकी क्या सोच है इससे फर्क नहीं पड़ता बुजुर्गो के प्रति उसकी क्या सोच है यह कोई मुद्दा नहीं है पर्यावरण के बारे में पढ़ना जरूर है परन्तु उसे सुधारने की ठेकेदारी नहीं लेनी है यही वजह है की शिक्षा एक बड़े व्यवसाय का रूप ले चुकी है | और जब कोई चीज़ व्यवसाय बन जाती है तो उसमे हर व्यक्ति सिर्फ व्यक्तिगत हित देखता है सामूहिक हित नहीं | आज शैक्षणिक संस्थये अपना हित देख रही है , माता पिता अपना हित देख रहे हैं, बच्चे अपना हित देख रहे है, शिक्षक अपना हित देख रहे हैं , सामजिक और सामूहिक हित किसी को नजर नहीं आ रहा है जो चीज सबसे सस्ती होनी चाहिए वही सबसे महंगी हो चुकी है | कहा जाता रहा है कि शिक्षा से समाज को बदला जाता है लेकिन आज के बदलते माहौल को देखते हुए ऐसा प्रतीत होता कि कही शिक्षा के लिए समाज तो नहीं बदल रहा है ?
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