ज्ञान लेने से पहले हमे यह समझना अत्यंत आवश्यक है की ज्ञान है क्या ?

ज्ञान हर व्यक्ति लेना चाहता है  |  ज्ञान के बिना हमारे जीवन का कोई मूल्य नहीं है  | लेकिन असमंजस यह है की कौनसा ज्ञान हमें किस समय लेना चाहिए जो ज्ञान हम ले रहे है वह  हमारे काम का है भी या नहीं ज्ञान की असल परिभाषा क्या है ? यह जाने बिना हम ज्ञान की तलाश में भागते जा रहे है  | इसलिए ज्ञान लेने, देने और दिलाने  से पहले हमे यह समझना अत्यंत आवश्यक है की ज्ञान है क्या ?
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 वास्तव में  ज्ञान का क्षेत्र काफी विस्तृत है यह एक अथाह महासागर है जिसके लिए हमारा सम्पूर्ण जीवन भी कम हैं जीवन के हर पल में ज्ञान समाया  हुआ है हर पल  कुछ न कुछ सीख अवश्य देकर जाता है | और हर पल की सारी  बातो को सारी  सीखो को हम सीख ले या याद  रख ले यह सम्भव नहीं है | लेकिन पल- पल की ये बातें जिन्हे हम अतीत कहते है कही न कही अनुभव के रूप में हमारे ज्ञान  को बढ़ाने में सहायक होती है  | समय और परिस्थिति के साथ यदि हम अतीत के अच्छे बुरे पलों  को वर्तमान में आत्मसात करना सीख ले तो ये ज्ञान हमारे भविष्य का निर्माता बन सकता है |
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 परन्तु  फिर भी इस ज्ञान को पाने के लिए हमे हमारे अहम और वहम को छोड़ना होगा सच्चाई और गलतियों को स्वीकारना होगा तब कही  इस ज्ञान  के पाने की सार्थकता सिद्ध  हो पायेगी |  ज्ञान पाने के लिए सच्चाई और गलतियों को स्वीकारना बहुत ही जरुरी होता है | जिसे कोई भी  इतनी आसानी से स्वीकार नहीं कर पाता यह एक कटु सत्य है  |  और यह भी कटु सत्य है  कि  यदि कोई अपनी गलती और सच्चाई  को स्वीकार नहीं कर पा  रहा है तो वह  अज्ञानी होने में खुद की बहुत बड़ी मदद कर रहा है  |


 आज हम किताबी ज्ञान और व्यवसायिक ज्ञान के मोहताज हो चुके है इन्हे हमने हमारी सबसे बड़ी बैसाखी  बना लिया है |  जिनके सहारे  हम चल तो सकते है लेकिन  दौड़ नहीं सकते है दौड़ने के लिए हमें इनके साथ व्यवहारिक ज्ञान को भी अमल में लाना होगा | आज ज्ञान के प्रति जो असमंजस बना हुआ है उसकी प्रमुख वजह यही है की हम प्रेक्टिकल में इसे स्वीकार नहीं कर पा रहे है |  पैसे कैसे कमाए और कैसे खर्च करे हमारा  आज का शिक्षा रूपी ज्ञान मूल रूप से इसी के इर्द गिर्द घूम रहा है | इसी सोच ने हमे व्यवहारिक ज्ञान से व्यवसायिक ज्ञान की और मोड़ दिया है |    आर्थिक ज्ञान का भंडार पाने के लिए हमने व्यवहारिक, नैतिक, सामाजिक ज्ञान को गौण  कर दिया है यही वजह है की हम पैसा कमाने की जद्दोजहद में लगे हुए है अब  बच्चो की सोच भी उसी प्रकार की बना रहे है | जो आज बच्चों  के ऊपर बने किताबी ज्ञान के दबाव से साफ नजर  आ रहा है |
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 किताबी ज्ञान को हम बालो के गुच्छे की तरह उलझा चुके है जिसे सुलझाने का एक मात्र सहारा है व्यवहारिक और नैतिक ज्ञान है जिसकी हम आवश्यकता भी समझते है और अपेक्षा भी करते है परन्तु दूसरों से |  जरा अपने आप से पूछ कर देखें  की हम खुद कितने व्यवहारिक और नैतिक है और दूसरों  से इनकी कितनी अपेक्षा रखते है |  शायद यह जानकर आपको बिलकुल भी ताज्जुब नहीं होगा की हर कोई यह अपेक्षाएं दूसरो से ही पाले हुए है  |    यही असमंजस अज्ञानता की सबसे बड़ी वजह है  | यदि अज्ञानता को दूर करना है तो किताबी ज्ञान के साथ सामाजिकता  का पाठ पढ़ाना  भी जरूरी है वर्ना आने वाली पीढ़ी के चेहरे मुरझाये रहेंगे रिश्ते नाते प्रभावित होंगे सो अलग | 

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