वजह चाहे कुछ भी हो लेकिन सच्चाई को स्वीकार करना एक बहुत बड़ी दुविधा है
वजह चाहे कुछ भी हो लेकिन सच्चाई को स्वीकार करना एक बहुत बड़ी दुविधा है | फर्क इस बात से इतना नहीं पड़ता की दूसरे गलत है फर्क इस बात से ज्यादा पड़ता है की की हम कितने सही है | दूसरो की कमिँया हमारे जीवन को इतना प्रभावित नहीं करती जितनी हमारी खुद की | इंसान वह नहीं होता जो एक हँसते व्यक्ति को रूला दे इंसान तो वह होता है जो एक रोते हुए व्यक्ति को भी हंसा दे | यह जानना भी जरूरी है की हम किसी की वजह से दुखी है या कोई हमारी वजह से भी दुखी तो नहीं है | दर्द दूसरो को भी उतना ही होता है जितना हमें होता है | आँसुओ का मूल्य तो सबके लिए एक जैसा होता है फिर क्यों हमें सिर्फ हमारे ही आँसू दिखाई देते है दूसरों के नहीं ? अक्सर जब लोग जागरूकता की बात करते है तो अधिकारों के प्रति जागरूक होने की करते है कर्तव्यों के प्रति जागरूक होने की बात कभी नहीं की जाती की भी जाती है तो उस पर इतना गौर नहीं किया जाता जितना अधिकारों के लिए किया जाता है |
नफरत और गुस्से से आज तक किसी का भला नहीं हुआ है नफरत गुस्से ने हमेशा घी में आग का काम किया है बावजूद इसके हम सच्चाई जाने बिना जाति धर्मों में उलझ कर प्यार मोहब्बत को कम कर लेते है | जबकि प्यार मोहब्बत ही ऐसी संजीवनी बूटी है जो मरे हुए इंसान को भी जिन्दा करने की क्षमता रखती है | नफरत और गुस्सा तो इंसनों को जीते जी मारने का अचूक रामबाण हथियार है | जहां प्यार महोब्बत राधा कृष्ण का निश्छल प्रेम है कृष्ण सुदामा की निस्वार्थ दोस्ती है | वहीं नफरत गुस्सा विद्वान् रावण का अहंकार है , कौरवो पांडवो की महाभारत है जो आज के युग में भी बदस्तूर जारी है | अंग्रेजी हुक्मरानो के काले कानून आज भी समाज में प्रचलित है | सिर्फ नाम बदले है, मुखोटे बदले है, खेल वही है सिर्फ पाले बदले है | रावण गली गली में देखे जा सकते है महाभारत संम्पूर्ण देश में |
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हमें इंतजार है राम या कृष्ण के अवतरित होने का | शायद वो भी यही सोच कर चुप बैठे है की जहाँ गलतियों को स्वीकारना तो दूर गलतियों को सुनने और समझने लिए लोग तैयार नहीं वहॉँ हमारे उपदेशो को सुना कर उन पर अमल करवाना इतना आसान नहीं रह गया है और जब उपदेशों पर अमल करना आसान नहीं होगा तो आदर्शो पर चलना कितना कठिन होगा | दोस्तों उपदेश और आदर्श आज भी वही और उसके लिए ईश्वर अल्लाह के अवतरित होने का इंतजार करने की जरूरत ही नहीं है जरूरत है तो सिर्फ गलतियों को सुनने समझने और तहे दिल से स्वीकार कर उन में सुधार करने की
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