जरूरी है संतुष्ट करने और संतुष्ठ होने का गुण
कुछ लोग लोगों को संतुष्ट नहीं कर पाने की वजह से अपने मन को दुखी कर लेते हैं | तो कुछ लोग लोगों से संतुष्ट नहीं हो पाने की वजह से अपने आप को दुखी रखते हैं | दुखी होने की दोनों ही वजह गलत है | व्यक्ति में संतुष्ट करने और संतुष्ठ होने का गुण होना जरूरी है |
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जीवन में कईअवसर ऐसे आते हैं जब हम बेवजह संतुष्ट नहीं होते हैं और दुखी रहते हैं जबकि वजह कोई बड़ी नहीं होती है | छोटी छोटी बातों की असंतुष्टि से मन को दुखी करने की कोई आवश्यकता नहीं होती है ये तो जीवन भर चलने वाली कहानी होती है | इसके लिए हमे दूसरो को संतुष्ट करने अपनी बात को सही तरीके से नहीं कह पाने किसी ऐसे काम को ना नहीं कह पाने जिसमे किसी की नाराज़गी की संभावना ही नहीं होती उसके लिए भी हम ना नहीं कह पाते हैं |
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यही वजन हम दिल पर रखकर असंतुष्ट रहते हैं की इसका भी कोई बुरा मान लेगा तो, कोई ऐसा सोच लेगा तो, कोई नाराज़ हो जायेगा तो, कोई गलत समझ लेगा तो, कोई ना नहीं सुन पाएगा तो , किसी ने हम में कोई कमी निकाल दी तो ,अधिकतर बातो में हम तो पर आकर रुक जाते हैं | ये तो शब्द हमे सबसे ज़्यादा नेगेटिव करता है और जितना हम इस शब्द के बारे में सोचते हैं उतना इस तो शब्द से कुछ बिगड़ता नहीं है | हम बेवजह इस तो शब्द की वजह से अपने आप को दबा हुआ हिन् बुद्धिमान असंतुष्ट बना कर रखते हैं |
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इस तो शब्द से जितना हम डरते हैं उतना ये डरावना होता नहीं है इसलिए तो शब्द से बाहर निकल कर देखो दुनिया बहुत आसान लगने लगेगी इस तो शब्द की वजह से कई आसान और सही काम भी हम गलत कर देते हैं और बाद में दुखी और असंतुष्ट होकर घर बैठ जाते हैं जिस तो की वजह से हम कुछ कर नहीं पा रहे थे उसे कोई बिना तो के आसानी से कर जाता है | और हम हाथ मलते रह जाते हैं फिर हम यह कहते हैं हम तो..... इसलिए और उसलिए नहीं कर पाए थे |
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