1 ग्राम खुशी = 1 किलो दुःख
एक मोटा बेशेप व्यक्ति जिसका वजन ज्यादा होता है देखने में अच्छा नहीं लगता बैशक चाहे उसका चाल चलन आचरण अच्छा हो| उसी तरह एक दुखी व्यक्ति जो हमेशा अपने दुखों का रोना रोता रहता है वह चाहे आचार विचार से परिपक्व हो, संस्कारित हो लेकिन जो दुखों का वजन अपने ऊपर लेकर चल रहा है वह सुंदर होते हुए भी सुंदर नजर नहीं आता है काराण है दुखों में बहुत वजन होता है दुखों के बोझ तले वह अपने आचरण संस्कारों अच्छाइयों को दबा लेता हैं और गुस्सा, कुंठा, नफरत शरीर में भरता रहता हैं| इस वजह से वह अपने शरीर को बेडोल बेशेप बना लेते हैं|
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- 1 ग्राम खुशी = 1 किलो दुःख
सोच कर देखे हम बेवजह कितना वजन जिंदगी भर ढोते रहते हैं | गधा हम्माली करते रहते हैं| खुशियां बहुत कीमती होती है दुखों की कोई कीमत नहीं होती खुशियां फिक्स डिपोजिट होती है जबकि दुख करंट अकाउंट की तरह होते हैं| खुशियों को सहेज कर रखना बहुत आसान है दुखों को यदि आप सहेज कर रखोगे तो कबाड़ा ही इकट्ठा करेंगे | खुशियां आपको कभी ना कभी बहुत बड़ी कीमत दे जाएगी जबकि दुख रद्दी के भाव भी नहीं बिक पाएगा|
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खुशियों को हम बहुत छोटी सी जगह में भी रख सकते हैं यहां तक कि हमारे पर्स में| दुखों को रखने के लिए बड़े-बड़े गोदाम भी छोटे पड़ जाएंगे|खुशियां मखमल की तरह होती है जिन्हें हाथ लगाने पर कभी भी आपके हाथों को कोई स्क्रेच तक नहीं आएगा| दुख काँच की तरह पारदर्शी होते हैं फिर भी हमें नजर नहीं आता है लेकिन जब ये टूटते हैं तो भूकंप आ जाता है और इन्हें हाथों से समेटा नहीं जा सकता| समेटेंगे तो कहीं ना कहीं अपने हाथों को तो चोट लगेगी ही दूसरों के हाथों को भी नुकसान पहुंचा देंगे | इसलिए यदि शरीर को चुस्त दुरुस्त रखना हे जिंदगी को यदि जीते जी जीना है तो शरीर को दुःखों का गोदाम नहीं बनाये खुशियों का गोदाम बनाये |
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