मानना न मानना सुनना न सुनना समझना न समझना के इर्द गिर्द घूमता है हमारा जीवन
यह जीवन वास्तव में इतना बुरा नहीं है जितना हमने बना दिया दुःख जीवन में इतने नहीं हैं जितने हमने मोल ले लिए लोग इतने बुरे नहीं हैं जितने हमे दिखाई देने लगे हैं फर्क सिर्फ नजरिये का है | बात मानने न मानने का है, समझने और न समझने का है, देखने और न देखने का है, कहने और न कहने का है, सुनने और न सुनने का है, सकारात्मक और नकारात्मक सोच का है |
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अक्सर यह कहा जाता है मेरी कोई बात मानता ही नहीं है पहले तो यह बताओ आज तक जितनी मानी उसका क्या हिसाब है? दूसरी बात यदि नहीं भी मानी तो इतना बवाल क्यों? और यदि आपकी मान ली तो जिनकी नहीं मानी वो क्यों दुखी हैं ?इस बात को समझने वाले कितने लोग हैं ?और न समझने वालों की लाइन तो बहुत ही बड़ी होगी इस समझने और न समझने के खेल को समझा समझा कर लोग थक गए और इसी वजह से अंतिम वाक्य के रूप में ये वाक्य काम में लिए जाते हैं कौन माथा फोड़ी करे ? कौन समस्या मोल ले ? समझकर कौन बेइज्जती कराएगा ? यही नकारात्मकता हमे ही नहीं किसी को भी सकारात्मक नहीं होने देती |
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यह बात सही है कि किसी भी बात की शुरुआत हम सकारात्मक होकर करते हैं और उसका अंत बीच रस्ते में ही करके नकारात्मक हो जाते है यही वजह है की न हम कुछ देखते हैं न देखने देते हैं न कुछ सुनते हैं न सुनने देते हैं कहते वही हैं जो कहना नहीं चाहिए और दूसरों को वो कहने नहीं देते हैं जो कहना चाहिए हमरा सारा जीवन मानने न मानने कहने न कहने सुनने न सुनने समझने न समझने के इर्द गिर्द घूमता रहता है इसी के बोझ तले हम अपने आप को दबाये हुए जीवन जीते रहते हैं |
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सोचकर देखे यदि हम अपने जीवन में मानने , कहने , सुनने , देखने , सोचने के सही और नीतिगत रस्ते अपना ले तो क्या हम हमारे परिवार और समाज के तनाव को कम करने में महत्वपूर्ण योगदान नहीं दे सकते? क्या हम अपने आप को और परिवार को स्वस्थ रखने में मदद नहीं कर सकते है ? क्या हम बेवजह के मन मुटावों लड़ाई झगड़ों से निजात पाकर आर्थिक मानसिक और शारीरिक परेशानियों को दूर नहीं कर सकते है ? क्या हम खुशियों भरा जीवन नहीं जी सकते है ? क्या ये हमारी मूलभूत समस्याऐ नहीं है यदि आपका उत्तर हाँ है तो आपको यह सब समझने से से किसने रोका है नए साल में हो जाये ये शुरू अमल कीजिये
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और यदि ना है तो happy new year क्योंकि यदि आपको खुश रहना है तो समझ कर अमल इन्ही बातों पर करना पड़ेगा और हम ऐसा करते भी हैं परन्तु बहुत कुछ खोने के बाद अक्सर हमे दूसरों की नसीहत और सलाह तब तक समझ नहीं आती जब तक हम खुद किसी गंभीर समस्या में नहीं पड जाते क्योंकि सुनी सुनाई बातों पर हम विश्वास कम ही करते हैं तो कोई बात नहीं जब आप पर बीते तब अमल करना शुरू कर दे तब तक के लिए happy new year again.
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