आज हम अहंकार और स्वाभिमान में फर्क नहीं समझ पा रहे हैं | किसी भी बात के लिए दुखी होकर जिद पकड़ना, मदद न लेना, बात को नहीं मानना स्वाभिमान नहीं हो सकता | आज अधिकतर लोग इसे स्वाभिमान का नाम देकर अपने आप को अहंकारी साबित कर रहे हैं यदि आप वास्तव में स्वाभिमानी बनना चाहते हैं तो पहले स्वाभिमान और अहंकार का अर्थ समझें | स्वाभिमान वह होता है जब हम किसी की बता को भले ही माने नहीं किसी की मदद भले ही न लें लेकिन उस बात को न मानने के लिए किसी को दोषी न ठहराएं, किसी का अहित करे बिना मदद को विनम्रता से अस्वीकार करे ठुकराए नहीं |
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परिस्थितियों और गलतियों के लिए किसी को दोषी नहीं ठहराएं दोष देना और न देना ही तय करता है की आप स्वाभिमानी हैं या अहंकारी | यदि आप किसी भी बात को नहीं मानने के लिए उसकी प्रतिक्रिया बिना लालच बिना क्रोध बिना द्वेषता के विनम्रता से मन की ख़ुशी से देते हैं तो यह आपका स्वाभिमान है | यदि आप यही प्रतिक्रिया मन में जहर भरकर मन को दुखी करके दूसरों को आरोपी बना देते हैं तो यह कभी स्वाभिमान नहीं हो सकता | यही अहंकार कहलाता है जिसे हम स्वीकार नहीं कर पाते हैं | यदि आप अपनी प्रतिक्रिया देते वक्त किसी को दोषी साबित करने की कोशिश करते हैं ,अपनी आँखों से अंगारे बरसाते हैं ,अपने मन को उथल - पुथल कर रहे हैं और इसे अपना स्वाभिमान समझ रहे हैं तो आप गलत फहमी पाल रहे हैं | यह आपके अहंकारी होने का सबूत है |
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वास्तव में सच तो यह है की अधिकतर लोग बिना स्वार्थ के, बिना लालच के, बिना द्वेषता के न तो प्रतिक्रिया देते हैं न लेते हैं, न मदद देते हैं न मदद लेते हैं| अपनी कथनी और करनी का यही फर्क हमारे अहंकार को ठेस पहुँचाता है हमारे स्वाभिमान को नहीं | और इससे भी बड़ा सच यह है की स्वाभिमानी व्यक्ति को कभी ठेस पहुँचती ही नही है | ठेस पत है अहंकारी व्यक्ति को और हम अक्सर लोगों को कहते सुन सकलते हैं की हमारे स्वाभिमान को ठेस पहुँचती है यदि आप वास्तव में स्वाभिमानी हैं तो अपने आप को ठेस पहुँचाना छोड़ें अहंकार अपने आप विनम्र होकर भाग जायेगा |
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