जागरूकता सही समय सही दिशा सही अर्थों में हो तो ही है जागरूकता

 जागरूकता  का  यदि सही अर्थों  में  इस्तेमाल किया जाये तो इससे कई समस्याओं का समाधान निकाला   जा सकता है |  वहीं  जागरूकता यदि सही समय , सही दिशा , सही अर्थों  में हो तो ही जागरूकता कही  जाएगी | यदि जागरूकता सिर्फ दिखावे के लिए हो, मात्र अधिकारों के लिए हो, स्वार्थ के लिए हो तो उसके दुष्परिणाम भी सामने आने लगते है |  अक्सर होता यही है हम जागरूकता की बात करते अवश्य  है परन्तु सिर्फ अधिकारों  लिए  | जबकि हमें कर्तव्यों के लिए भी जागरूक होना चाहिए  |  किन्तु कर्तव्यों के लिए बहुत काम लोग जागरूक होते है |
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  जो  लोग  अधिकारों के  प्रति जागरूक  होते है वो भी समस्या सर पर खड़ी हो जाने पर |  समस्या आने से पूर्व यदि जागरूक होने की बात की जाये तो वो उनके समझ से परे  होती है  | या यूं  कहा जाये की वो इसमें भी लापरवाही बरतते है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी |  अधिकतर लोग जागरूक होते है स्वार्थ की पूर्ति के लिए   | जबकि जागरूकता निस्वार्थ होनी चाहिए |  अक्सर लोगअपने आप को  जागरूक तब समझते है जब किसी को नीचा दिखने की आवश्यकता महसूस होती है |   कभी किसी को ऊपर उठाने के लिए भी जागरूक होकर देखे जिंदगी की असली ख़ुशी नसीब होगी |  सरकारी सुख सुविधाओं का लाभ लेने के लिए लोग असली हक़दारो का हक़  मारकर भी अपने आप को जागरूक नागरिक कहलवाने में गर्व महसूस करते है |  जबकि सरकारी नुकसान के लिए बहुत काम लोग  अपने आप को जिम्मेदार मानने  का साहसिक कदम उठा पाते है |
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 जागरूक होने के लिये  मुद्दों की कमी नहीं है परन्तु अधिकतर लोग उन मुद्दों को चुनते है जिनमे उनका हित  होता है  |  जबकि जागरूकता के लिए सामूहिक हित  के मुद्दों का चयन करना चाहिए | आर्थक मुद्दों पर लोग जितनी तेजी से जागरूक होते है उससे ज्यादा  तेजी से स्वास्थ्य और पर्यावरण से जुड़े मुद्दों पर जागरूकता दिखने की आज महत्वपूर्ण आवश्यकता है |  यदि जागरूकता का सही अर्थ समझा जाये तो बहुत से पारिवारिक ,सामाजिक और राष्ट्रीय  समस्याओं  के हल आसानी से निकले जा सकते है | 

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