jitendra first movie geet gaya ptthro ne | बॉडी डबल जंपिंग जैक जितेंद्र का संघर्ष
jitendra first movie geet gaya ptthro ne |
बॉडी डबल जंपिंग जैक जितेंद्र का संघर्ष
इस पोस्ट में हम बता रहे है बॉलीवुड के जंपिंग जैक जितेंद्र की पहली फिल्म गीत गाया पत्थरों ने के बारे में | कैसे मिली थी जितेंद्र को उनकी पहली फिल्म ? कितने पापड़ जितेंद्र को बेलने पड़े थे ? कितना संघर्ष करना पड़ा था जितेंद्र को अपनी पहली फिल्म के लिए ? जानना चाहते है इस पोस्ट को जरूर पड़ें |
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फिल्म रिलीज डेट 22 नवंबर 1964
निर्माता निर्देशक वी शांताराम
कलाकार जितेंद्र राज श्री नाना पलसीकर
संगीत राम लाल
साल 1964 में रिलीज फिल्मे थी संगम , आई मिलान की बेला ,कश्मीर की कली , दोस्ती , जिद्दी ,राजकुमार ,हक़ीक़त , लीडर , वो कोन थी |
साल 1964 में कमाई के मामले में नंबर 1 पर थी राज कुमार, राजेंद्र कुमार ,वैजयंती माला की फिल्म संगम | फिल्म ने भारत में कमाए थे उस वक्त 4 करोड़ रूपये | फिल्म जबदस्त ब्लॉक बस्टर हुई थी | कमाई के मामले में no 2 पर रही थी धर्मेंद्र , राजेंद्र कुमार ,सायरा बानो की फिल्म आई मिलन की बेला | कमाई थी 2 करोड़ 25 लाख no 3 पर थी सुधीर, सुशील, संजय खान की फिल्म दोस्ती कमाई थी 2 करोड़ रूपये |
फिल्म गीत गाया पत्थरों ने में हसरत जयपुरी के लिखे गीत कोई खास कमाल नहीं कर पाए | सिर्फ टाइटल सांग जो महेंद्र कपूर और आशा भोसले की आवाज में " गीत गाया पत्थरों ने "ही कुछ मधुर बन पड़ा |
जितेंद्र भले ही हिंदी सिनेमा का एक जाना पहचाना नाम बन गए है परन्तु उस जमाने में भी जितेंद्र को हिंदी सिनेमा में कदम जमाने के लिए जबरदस्त संघर्ष करना पड़ा था |
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फिल्म गीत गाया पत्थरों ने जितेंद्र की पहली फिल्म थी | इस फिल्म से जितेंद्र ने बॉलीवुड में डेब्यू किया था | परन्तु इस फिल्म को पाने से पहले की अभिनेता जितेंद्र की कहानी भी बड़ी रोचक है | आज हम इस पोस्ट में उन्ही
बातों को बताएंगे जिन घटाओं की वजह से बॉलीवुड का यह जंपिंग जैक रवि कपूर से जितेंद्र बना |
जितेंद्र का असली नाम रवि कपूर है ये बात बहुत से लोग जानते भी है | परन्तु यह बात बहुत कम लोग जानते है की उनका यह नाम बॉलीवुड के अपने जमाने के मशहूर निर्माता निर्देशक वी शांता राम जी ने उन्हें दिया था | वी शांता राम जी को को दो आँखे बारह हाथ 1957 , नवरंग 1959 , सेहरा 1963 और गीत गाया पत्थरों ने 1964 जैसी सफल फिल्मों के लिए आज भी याद किया जाता है |
जितेंद्र के पिता अमरनाथ कपूर का ज्वेलर्स का काम था जो बॉलीवुड के लिए अर्टिफिशियल ज्वेलरी सप्लाई करने का काम करते थे | वो वी शांताराम जी को भी वो ज्वेलरी सप्लाई करते थे | इस वजह से दोनों की मित्रता थी |
अमरनाथ जी के बेटे रवि कपूर जो आज जितेंद्र नाम से लोकप्रिय है भी अपने पिता के साथ राजकमल स्टूडियो जाया करते थे | वहीं रवि की भी इच्छा फिल्मों में काम करने प्रति हुई वी शांता राम जी ने रवि की फिल्मों के प्रति उत्सुकता देख कर उसे अपने यहाँ 150 रूपये मासिक वेतन पर काम पर रख लिया काम था |
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उस समय रवि का काम था यदि कोई कलाकार नहीं आता था तो उसके एवज में छोटा मोटा रोल फिल्मो में करना | वी शांता राम जी ने रवि कपूर को पहली बार 1959 में आई फिल्म नवरंग में काम दिया | फिल्म नवरंग में उस वक्त जितेंद्र को रोल दिया गया प्रसिद्द हीरोइन संध्या के बॉडी डबल का |
यदि आपको बॉडी डबल का अर्थ पता है तो ठीक है नहीं तो जान लें | बॉडी डबल का अर्थ है ऐसा व्यक्ति जो फिल्म में वास्तविक कलाकार के कपड़े पहन कर खड़ा होता है ,उसका चेहरा नहीं दिखाई देता है | फिल्म नवरंग में यही रोल पहली बार आपके इस फेवरेट सुपर स्टार को प्ले करना पड़ा था |
हमारे लिए यह एक मामूली रोल हो सकता है परन्तु रवि कपूर के लिए ये रोल मामूली रोल नहीं था क्योंकि यहीं से हिंदी सिनेमा के जनक कहे जाने वाले वी शांताराम जी ने रवि कपूर को नाम दिया था जितेंद्र |
बाद में जितेंद्र ने अपने एक इंटरव्यू में यह खुलासा भी किया की मुझे जन्म देने वाले जरूर मेरे माता पिता थे परन्तु में आज जो कुछ हूँ वी शांता राम जी की वजह से हूँ क्योकि सिनेमा में मेरा जन्म वी शांता राम जी की वजह से ही हुआ था |
जितेंद्र का फ़िल्मी सफर नवरंग के इस छोटे से रोल से शुरू जरूर हुआ परन्तु इसके लिए भी उनका संघर्ष कम नहीं था | कहा जाता है की बीकानेर में फिल्म नवरंग की शूटिंग के दौरान जितेंद्र सेट पर लेट पहुंचे |
वी शांताराम जी इस बात से नाराज हो गए और मेकप मेन को जितेंद्र का मेकप करने के लिए मना कर दिया | प्रोडक्शन टीम को जितेंद्र को वापस भेजने को कहा इस बात से व्यथित होकर जितेंद्र को अपनी गलती का एहसास हुआ और अगली सुबह ही जितेंद्र जल्दी तैयार होकर वी शांता राम जी पास पहुंच गए |
गलती के एहसास और जितेंद्र की काम के प्रति लगन देख कर वी शांता राम जी बहुत प्रभावित हुए और जितेंद्र की छोटी मोटी गलतियों को इग्नोर करते गए | यहां तक की 25 रीटेक के बाद भी जितेंद्र द्वारा बोला गया गलत डायलॉग ही शांता राम जी को ओके करना पड़ा डायलॉग था सरदार सरदार दुश्मन टिड्डियों के दल कि तरह बढ़ता ही आ रहा है |
इसके बाद 1963 आई वी शांताराम जी की फिल्म सेहरा में भी जितेंद्र को छोटी सी भूमिका से संतोष करना पड़ा लेकिन जितेंद्र ने कभी हार नहीं मानी | यही वजह थी की 1964 में वी शांताराम जी ने गीत गाया पत्थरों में हीरो की भूमिका के लिए जितेंद्र को चुना | यह जितेंद्र की डेब्यू फिल्म थी साथ ही यह राज श्री की भी डेब्यू फिल्म थी जो वी शांता राम जी की सुपुत्री है |
अपनी इस पहली फिल्म के लिए जितेंद्र को मात्र 100 रूपये मासिक के वेतन पर काम करना पढ़ा था जबकि उन्हें एक्स्ट्रास के रोल के लिए 150 रूपये प्रति माह दिए जाते थे |
जितेंद्र को बताया गया की उन्हें फिल्म गीत गाया पत्थरो ने में काम करने का अवसर दिया जा रहा है जो उनके करियर के लिए लाभ दायक सकता है और वास्तव में ऐसा ही हुआ गीत गाया पत्थरों ने फिल्म चल निकली जितेंद्र की पहचान बनी |
हसरत जयपुरी के लिखे गीत कोई खास कमाल नहीं कर पाए सिर्फ टाइटल सांग जो महेंद्र कपूर और आशा भोसले की आवाज में है गीत गाया पत्थरों ने ही कुछ मधुर बन पड़ा |
इसके बाद आई जासूसी फिल्म फ़र्ज़ ने जितेंद्र को बॉलीवुड के उभरते सितारे और जंपिंग जैक जैसे ख़िताब दिए जिसमें जितेंद्र की अपनी मेहनत के आलावा वी शांताराम जी की भी भूमिका भी प्रमुख रही
1964 रिलीज हुई फिल्मो के लिए 1965 में फिल्म फेयर समारोह आयोजित किया गया था जिसमें राज कपूर ,वैजयंती माला ,राजेंद्र कुमार की फिल्म संगम को सबसे ज्यादा 11 केटेगिरी में नॉमिनेट किया गया था | फिल्म दोस्ती को 7 केटेगिरी में नॉमिनेट किया गया | फिल्म दोस्ती , फिल्म फेयर बेस्ट फिल्म सहित कुल 6 अवार्ड जीत कर 1964 की सबसे ज्यादा अवार्ड जितने वाली फिल्म बनी |
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