1968 movie mere huzoor cast story songs lyrics | राज कुमार जितेंद्र माला सिन्हा फिल्म मेरे हुजूर से जुड़े किस्से


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 राज कुमार  जितेंद्र माला सिन्हा 

  फिल्म मेरे हुजूर से जुड़े किस्से 


आज हम  फिल्म  मेरे हुजूर के बारे में आपको बताने जा रहे है |   फिल्म की  जितनी तारीफ की जाये कम  है फिल्म का  गीत संगीत  और कलाकारों  का अभिनय  फिल्म की जान है |  1968  का मदहोश कर  देने वाला लाजवाब संगीत  और लखनवी तहजीब की शानदार मिसाल  फिल्म  में पेश की गई है | 




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 फिल्म  में  जितेंद्र के साथ राज कुमार की  उपस्थति  फिल्म को देखने के लिए मजबूर करती है |  जीवन में बदलाव सिनेमा से लाओ का संदेश देने वाली इस म्यूजिकल रोमांटिक मूवी  के बारे में आइये जानते है और भी बहुत कुछ

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फिल्म रिलीज          26  अक्टूबर  1968 

निर्माता                  मलिक चंद कोचर , विनोद कुंमार 

निर्देशक                विनोद कुमार 

कलाकार              जितेंद्र , राजकुमार, माला सिन्हा 

                           डेविड  जानी ,वोकर 

                           के एन  सिंह,  मनोरमा 

संगीतकार           शंकर जय किशन 

 बात करते है  फिल्म के सुपर हिट गीत संगीत के बारे में   फिल्म में संगीत दिया है  शंकर जय किशन ने गीत के बोल लिखे है  हसरत जयपुरी साहब ने | गीत संगीत को मधुर स्वर दिया है   लता मंगेशकर, आशा भोसले,  मोहम्मद रफ़ी , मन्नाडे  ने | 

पुरानी  फिल्मों  के संगीत  के शौकीन लोग उस जमाने में  फिल्म मेरे हुजूर के गानों  को सुनकर ही फिल्म देखने का मन बना लेते थे  क्योंकि   रफ़ि  साहब की आवकज सुनकर ही   दर्शक सिनेमा घरों  की तरफ दौड़ पड़ते थे |  फिर मेरे हुजूर के रफ़ि साहब द्वारा गाए  गए ये गीत तो आज भी अपनी लोकप्रियता बनाये हुए है | 


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रुख से जरा नकाब उठा  दो मेरे हुजूर  , गम उठाने के लिए  में तो जिए जाऊंगा ,जो गुजर रही है मुझ पे  वो कैसे  में बताऊ  और मन्ना डे  द्वारा गाया  क्लासिकल  झनक झनक  तोरी  बाजे  पायलिया   दमदार गीत संगीत की वजह से आज 50  वर्षों  बाद भी लोग फिल्म मेरे हुजूर को नहीं भुला पाए है 

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साल 1968   धर्मेंद्र की आँखे , शिकार,  इज्जत,  मेरे हमदम मेरे दोस्त रिलीज हुई थी |  वहीँ शशि कपूर  कन्यादान और हसीना मान जाएगी में नजर आये थे |  उस दौर  में मेहमूद ऐसे अभिनेता थे जो अपनी कॉमेडी के दम  पर हीरो से भी ज्यादा महंगे अभिनेता थे |  मेहमूद का फिल्म में होना ही फिल्म  सफलता की गारंटी हुआ करता था | 

साल 1968  में मेहमूद  फिल्म पड़ोसन  साधु और शैतान  दो कलियाँ  नील कमल  आँखे  औलाद  नजर आये |  जबकि   साथी और झुक गया आसमान  राजेंद्र कुमार नजर आये |  मनोज कुमार नजर आये नील कमल और आदमी में  | 






राजकुमार ने मेरे हुजूर और  नीलकमल  जैसी म्यूजिकल सुपर हिट फिल्मों  में अपना जलवा दिखाया |  ट्रेजेडी किंग  दिलीप कुमार नजर आये फिल्म संघर्ष और  आदमी में |  वही  जितेंद्र  मेरे हुजूर के आलावा फिल्म औलाद तथा सुहागरात में अपने अभिनय का जलवा दिखाने  में सफल रहे  | 



साल  1968 में  कमाई के  मामले  में  no  1 पर  धर्मेंद्र  माला सिन्हा की फिल्म आँखे रही थी | जिसके निर्देशक है सुप्रसिद्ध टीवी धारावाहिक  रामायण  के  निर्देशक रामानंद सागर |  फिल्म ब्लॉक बस्टर रही थी |  फिल्म  ने उस वक्त  भारत में  कमाए थे 3  करोड़ 25  लाख रूपये  | no  2  पर थी विश्वजीत माला सिन्हा  की फिल्म दो कलियाँ  कमाई की थी 2  करोड़ रूपये की | 
 

 no  3  पर 1  करोड़ 75  लाख की कमाई के साथ राजकुमार ,मनोज कुमार ,वहीदा रहमान की फिल्म नीलकमल |  फिल्म मेरे हुजूर बॉक्स ऑफिस पर एक एवरेज फिल्म रही थी जिसकी कमाई मात्र 68  लाख रूपये  थी कमाई के मामले में फिल्म 19  no  पर रही थी | 


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बात की जाये फिल्म मेरे हुजूर की कहानी की फिल्म की   कहानी लव ट्रायंगल है  | नवाब सलीम यानि राजकुमार  शहर के महशूर रईस  है |  सारा शहर उन्हें  बिगड़े नवाब के रूप में जनता है  |  अख्तर हुसैन अख्तर यानि जितेंद्र   जो कवि है नवाब साहब के दोस्त है |

इस फिल्म में भी लखनऊ के  नवाब की भूमिका में नजर आये थे राजकुमार मीना  कुमारी की थी आखरी  फिल्म 





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   नवाब सहब  को अपनी बहन की खूबसूरत सहेली  सल्तनत  यानि माला सिन्हा से प्यार हो जाता है  और वो सल्तनत  के सामने शादी  प्रस्ताव  रखते है |  परन्तु सल्तनत  नवाब साहब  की शराब और शबाब की महफ़िलो  से परिचित होने वजह से इस प्रस्ताव को ठुकरा देती है |

  उधर  नवाब साहब  के दोस्त अख्तर हुसैन अख्तर भी एक ही  मुलाकात में सल्तनत  की   सुंदरता के कायल हो जाते है | सल्तनत  भी अख्तर साहब  की शायरी  से प्रभावित होकर अपना दिल   दे बैठती है | दोनों की  शादी  हो जाती है |  एक बच्चा भी  है | 

 उधर घटना क्रम  इस तरह का बनता है की  बुरी संगति में पड़ने  से अख्तर साहब की शराफत  शराब और तवायफों के गहनों  में  गिरवी पड़  जाती है |  जल्द ही अख्तर साहब और सल्तनत   के तलाक की नौबत आ जाती  है |  जब यह बात नवाब सलीम  साहब को पता चलती है तो  वो अपने दोस्त  अख्तर  को समझाने  और सल्तनत  के  प्रति हमदर्दी जताने का प्रयास  करते है |

 इंसानियत के नाते  उसकी और उसके बच्चे  की मदद करते है परन्तु  बिगड़े हुए रईस  होने की   वजह से समाज में  सल्तनत और सलीम साहब की  इंसानियत   को गलत निगाहो  देखा जाने  लगता है |  सल्तनत   को  बदनामी  से बचाने  के लिए   नवाब सलीम  साहब , सल्तनत से शादी कर  लेते है | 

लेकिन उन्हें इंतजार रहता है अख्तर को उसकी भूल का एहसास होने के बाद उसकी  अमानत  वापस लौटाने  का |   की कब अख्तर को अपनी गलतियों  का एहसास हो और कब  वो अख्तर को सल्तनत वापस लौटाए | होता भी यही है अख्तर को अपनी  गलती का एहसास होता है |


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 लेकिन  जब उसे पता चलता है की नवाब साहब और सल्तनत ने  शादी  कर ली है तो वो  आखरी बार अपने बेटे से मिलकर  उनकी जिंदगी से दूर चला जाना चाहता है |  यही विचार कर  वो नवाब साहब के घर में  आ जाता है  परन्तु नवाब साहब के  अचानक सामने आ जाने  की वजह से  डर  कर भाग जाता है |

  नवाब साहब भी अख्तर को रोकने की पूरी कोशिश करते है परन्तु  गलत फहमी में अख्तर भगता जाता है |  तभी नवाब साहब  एक कार  से  टकरा जाते  है  और अख्तर और सल्तनत की बाहों  में दम तोड़ देते है |  कहानी  खत्म  होती है | 

कई  वर्षों  बाद जब सल्तनत और अख्तर का बेटा बड़ा होता है और  डाक्टरी की पढ़ाई  करने  जब विदेश जाने की  तैयारी करता है तो  सल्तनत उसे नवाब साहब की कब्र  पर  ले जाती है |  वहाँ  एक बुजुर्ग पागल सा व्यक्ति नजर आता है  | परिवार के सभी लोगों  को यह देख कर आश्चर्य होता है  वो व्यक्ति कोई और नहीं  बल्कि उस बच्चे का पिता और सल्तनत का पति अख्तर ही था | 

  जो  वर्षों  से नवाब साहब की कब्र की साफ सफाई और देखभाल कर रहा था  | अपने गुनाहो का प्रायश्चित कर रहा था |  शानदार कहानी और दमदार अभिनय के  बावजूद  फिल्म उस वक्त दर्शको को कम पसंद आई  परन्तु आज भी फिल्म को देखने पर  फिल्म नए जमाने कहानी लगती है  |  

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जितेंद्र को लगता था की फिल्म पूरी तरह से राज कुमार पर केंद्रित है परन्तु राज कुमार ने जितेंद्र को भरोसा दिलाया की फिल्म  में दोनों की भूमिका महत्व पूर्ण है  और जब फिल्म रिलीज हुई तो  जितेंद्र राजकुमार और माला सिन्हा के काम को काफी सराहा गया 

और मेरे हुजूर आगे चलकर जितेंद्र, राजकुमार और माला सिन्हा के फ़िल्मी करियर की महत्वपूर्ण फिल्मो में गिनी जाने लगी  खैर  यदि आपने फिल्म को  देखा है  तो कमेंट बॉक्स में जरूर बताये आपको फिल्म कैसी लगी  | 

जानी  यानि राजकुमार के लिए कहा  जाता था की राजकुमार कभी  भी किसी को ओरिजनल नाम से नहीं बुलाते थे 

वो धर्मेंद्र  को जितेंद्र  और  जितेंद्र को  धर्मेंद्र के  नाम से बुलाते थे |    किसी को किसी भी नाम से  पुकारते थे  कहा  जाता है एक बार तो धर्मेंद्र के साथ इस  बात लेकर कहा सुनी  भी हो  गई  थी तब  राजकुमार ने अपने चिर परिचित अंदाज में धर्मेंद्र से कहा  था जानी  नाम में क्या रखा है राजेंद्र कहो  या  जितेंद्र  धर्मेंद्र कहो   या बंदर 


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 धर्मेंद्र  ने हँसते हुए बात को टाल दिया और राजकुमार  की बात का  बुरा नही माना क्योंकि  धर्मेंद्र जानते थे की राजकुमार  किसी भी अपनी आदतानुसार  मजाक  में  कुछ भी बोल देते थे  | 

राज कुमार का असली नाम कुलभूषण पंडित है  लेकिन फिल्म इंडस्ट्रीज में उन्हें  जानी के नाम से  जाना जाता है | 

फिल्म मेरे हुजूर  में माला सिन्हा ने जबरदस्त अभिनय का जलवा दिखाया है |  कहा  जाता था माला  सिन्हा का असली नाम  आल्डा सिन्हा है |  स्कूल में बच्चे उन्हें डालडा कह कर  पुकारते थे इस लिए उन्होंने खुद ही अपना नाम बदल के माला रख लिया | 



   

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