पहिया, आग, पानी और हम


पौराणिक काल में मनुष्य जंगलों में रहा करता था| जंगलों में ही उसने पत्थरों को रगड़कर आग जलाना सीखा | आग जलाकर उसने भोजन पकाना सीखा, पका हुआ भोजन कच्चे भोजन से अधिक स्वादिष्ट होता है| इस बात की जानकारी उसे यहीं से मिली फिर उसने पहिये का आविष्कार किया | जिस तरह पहिए के आविष्कार से दुनिया को गति मिली और सभ्यताओं का विकास हुआ उसी तरह आग ने भी हमारी सभ्यताओं को विकसित किया आग लगाना हम सीख गए लेकिन बुझाने के लिए उपाय मिला पानी| इस तरह पहिया, आग और पानी से हमारी सभ्यता पनपती गई| इन तीनों के बिना हम जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते ,लेकिन जिन चीजों से सभ्यताएं विकसित हुई दुनिया प्रगति की ओर अग्रसर हुई, नए-नए आविष्कार हुए, आर्थिक विकास हुआ, आज उसी पहिये, आग, और पानी के दुरूपयोग की वजह से हम शारीरिक और मानसिक विकास को खोते जा रहे हैं | पहिये ने हमें गति प्रदान की लेकिन जिस गति से हम जिंदगी को दौड़ा रहे हैं उससे हम शारीरिक और मानसिक रुप से पिछड़ रहे हैं आग से हमने भोजन बनाना सीखा, भोजन बनाते-बनाते हम उसी आग से हथियार बनाना सीख गऐ और अब तो दुनिया आग से खेलने लगी है| 'जल ही जीवन है' लेकिन आज पीने के पानी की समस्या से सारा विश्व त्रस्त है स्वच्छ और शुद्ध पानी बहुत कम लोगों को नसीब हो रहा है|
जिन चीजों ने सभ्यताओं को विकसित करने में अहम् भूमिकाएं निभाई थी हम उनका दुरुपयोग कर सभ्यता से असभ्यता की और बढ़ रहे हैं | पहिये की गति हम इतनी तेज़ कर चुके हैं की उसे थामने की आवश्यकता ही महसूस नहीं कर रहे है| आग हम घर - परिवारों से लेकर दुनिया के कोने - कोने में लगा चुके हैं और ताज़्ज़ुब इस बात का है की जितनी आग हम फैला चुके हैं उतना तो पानी भी उसे ठंडा करने के लिए हमारे पास नहीं बचा हे बुझाना बहुत दूर की बात है अब तो आग लगाने लिए हम शब्दों का भी इस्तेमाल करने लगे है| शब्दों गई को बुझाने के लिए पानी रूपी शब्द चाहिए जो हमारे पास न के बराबर बचे हैं | जीवन को गति प्रदान करने के लिए पहिया जरूरी है आग नहीं होगी तो हम हमारे जीवन को निखार नहीं पाएंगे और पानी के बिना हम मछली की तरह तड़पते रह जाएंगे| इसलिए जीवन में द्वेष, ईर्ष्या, कुंठा को मिटाने के लिए पहिये, आग और पानी का संतुलन बनाए रखना जरूरी है नहीं तो आने वाले समय में पहिये , आग और पानी से की गई सभ्यताएँ जमीं दोज हो जाएंगी नष्ट जाएंगी| इसलिए पानी बचाओ आग बुझाओ |

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