विदाई समारोह हेतु उद्बोधन
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सर / मैडम ने इस विद्यालय में प्रधानाध्यापक /प्रधानाध्यापिका के रूप में हमारा मार्गदर्शन जिस विनम्रता, स्नेहशीलता और अपनत्व के साथ किया उसे विद्यालय परिवार कभी भूल नहीं पाएगा | विद्यालय के बच्चों के प्रति उनका समर्पण ,योगदान , परिश्रम अविस्मरणीय रहेगा |
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इस विदाई के अवसर पर हमे इस बात का दुःख ज़रूर है की हम उनके अनुभवों से आगे लाभांवित नहीं हो सकेंगे | लेकिन इस बात की ख़ुशी भी है की सर / मैडम अपनी राजकीय जिम्मेदारियों से मुक्त होकर अपने परिवार को भरपूर समय दे पाएंगें / पाएंगी | अपने अनुभव से अपने परिवार को प्रेरणा दे पाएंगी | मैं अपने उद्बोधन को समाप्त करने से पूर्व मैडम से आशान्वित होना चाहता हूँ की आगे हमे भी अपने परिवार की तरह अपने अनुभवों से प्रेरित करते रहेंगें / रहेंगी |
धूल थे हम सभी , बागवां बन गए ,
चाँद का नूर ले , चन्द्रमा बन गए
ऐसी मैडम को भला , कैसे करें विदा
जिनकी शिक्षा से हम , क्या से क्या बन गए
सुबह दुखी होकर खबर लाई है
दिन भर बैचेनी है धूप गर्माई है
दिल में दर्द है आँखे पानी ले आई है
क्यों की आज मेरे गुरु की विदाई है
प्रणाम उन गुरुओं को
रोशनी दिखाकर जो अँधेरा मिटाए
सलाम उन गुरुओं को
फर्श से अर्श तक जो पहुँचाए
हर मोड़ पर निशान नहीं होता
गुरु के रिश्तो का और नाम नहीं होता
दीपक की रोशनी में ढूँढा है आपको
हम पर तो मेहरबान होना है आपको
बर्फ को कौन रोक सकता है पिघलने से
दही को कौन रोक सकता है जमने से
हम भी तो शिष्य है आपके पढ़ाने से
हमे कौन रोक सकता है दुनिया को बदलने से
धन्यवाद
प्रणाम उन गुरुओं को
रोशनी दिखाकर जो अँधेरा मिटाए
सलाम उन गुरुओं को
फर्श से अर्श तक जो पहुँचाए
हर मोड़ पर निशान नहीं होता
गुरु के रिश्तो का और नाम नहीं होता
दीपक की रोशनी में ढूँढा है आपको
हम पर तो मेहरबान होना है आपको
बर्फ को कौन रोक सकता है पिघलने से
दही को कौन रोक सकता है जमने से
हम भी तो शिष्य है आपके पढ़ाने से
हमे कौन रोक सकता है दुनिया को बदलने से
धन्यवाद
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