जीवन को पतंग और पतंग की डोर की तरह बनाओ जब चाहो ढील दो जब चाहो खींच लो

पतंग की डोर हमेशा पतंग उड़ाने वाले के हाथ में होती है फिर भी उसे कभी ढीला छोड़ना पड़ता है तो कभी वापस भी खींचना पड़ता है यदि आप पतंग को आसमान की ऊंचाई छू आना चाहते हैं तो उसे ढील देनी ही पड़ेगी आसमान की बुलंदी पर पहुँचने के लिए आपको यह भी ध्यान रखना पड़ेगा की कोई आपकी पतंग को काट नहीं दे |

Third party image reference
जब आप किसी की पतंग को काटने का उत्साह रखते हैं तो दूसरे भी दुगने उत्साह से आपकी पतंग को काटने की कोशिश कर  सकते  है और कई बार हमारे हाथ में होते हुए भी हवा के रुख से पतंग की दिशा बदल जाती है यही सब कुछ हमारी ज़िंदगी में भी होता है फिर क्यों हम इन बातो से अनजान बने रहते हैं? क्यों हम स्वाभाविक जीवन को सिद्धांतो में बांधने की नाकाम कोशिश करते हैं ?

Third party image reference
जबकि हम यह भी जानते हैं कई बार विज्ञानं के बड़े बड़े सिद्धांत भी किसी न किसी वजह से काम नहीं कर पाते हैं फिर क्यों हम नहीं समझ पाते हैं की ज़िंदगी के सिद्धांत भी कभी कभी किसी न किसी वजह से लागू नहीं हो पाते हैं| जीवन को पतंग और पतंग की डोर की तरह बनाओ जब चाहो ढील दे सको आवश्यकता पड़े तो खींच लो |

Third party image reference
पतंग के कट जाने पर दूसरी पतंग से मुकाबला शुरू किया जाता है डोर को नहीं फेका जाता जीवन में हम यही गलती करते हैं असफलता हाथ लगने पर हम निराश होकर बैठ जाते हैं जबकि निराश होकर बैठना किसी समस्या का समाधान नहीं है एक असफलता हाथ लगती है तो अगली असफलता के लिए फिर कमर कसनी पड़ेगी तब जाकर सफलता हाथ लगेगी |

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

बेटी हिंदुस्तान की

आधुनिक और प्राचीन जीवन का असमंजस

मनुष्य एक प्राकृतिक उपहार है लेकिन मशीनी होता जा रहा है