बच्चों को अनुशासन सीखाने के लिए आवश्यक नहीं है मारपीट करना
आज के इस महंगाई के दौर में बच्चों को पाल पोस कर बड़ा करना बड़ा मुश्किल काम हो गया है | बच्चे मासूम होतें हैं, नासमझ होतें हैं, कोमल होतें हैं, प्यारे होतें हैं | इसी वजह से उनमे भगवान का वास नज़र आता है | जो लोग यह बात समझते हैं उन्हें बच्चों की पीड़ा देखकर बड़ा कष्ट होता है |
कई बार मासूमियत और नासमझी की वजह से बच्चे गलतियां कर बैठते हैं और आर्थिक नुकसान करवा देतें हैं | ऐसी स्थिति में हमें गुस्सा आ जाता है | कई बार पढाई - लिखाई में शिकायत मिलने पर भी हमें गुस्सा आ जाता है | कई बार बच्चों की शरारतों की वजह से हम अपने आप को अपमानित महसूस करतें हैं और इन्ही शरारतों और शिकायतों की वजह से हम बच्चों को अनुशासित रखना चाहतें हैं |
अनुशासन सीखाने के लिए दंड स्वरुप हम मार -पीट का सहारा लेते हैं | कई बार तो लोग बच्चों की पिटाई इस कदर करतें हैं की उन्हें गंभीर चोंटें तक आ जाती है | याद करके देंखें क्या बचपन में आप से गलतियां नहीं हुई ? क्या बचपन में आपसे नुकसान नहीं हुआ ? क्या बचपन में मोहल्ले के लोग आपकी शिकायत लेकर आप के घर नहीं पहुंचे ? क्या स्कूल से आप की कभी शिकायत नहीं आई ?
और यदि शिकायत आई तो आप के साथ हुई मार- पीट का अनुभव कैसा रहा ? या कभी बिना मार -पीट के प्यार से आप को अनुशासन सिखाया गया वह आपको कैसा लगा ? मार -पीट किसी के भी साथ हो कुंठा, गुस्सा, द्वेष, ईर्ष्या जैसे अवगुण शायद यहीं से पनपते है | और ये अवगुण कभी भी अनुशासन का हिस्सा नहीं हो सकते | समय के साथ सोच को बदलना भी आवश्यक है | आपसी समझाईश, सूझ- बूझ प्रेम, प्यार से भी अनुशासन सिखाया जा सकता है | यदि आप ऐसा महसूस कर सकें तो | यदि आपको ये लेख पसंद आया हो तो like करें, share करें , follow करें और comment box में अपने सुझाव अवश्य दें |
आज के इस महंगाई के दौर में बच्चों को पाल पोस कर बड़ा करना बड़ा मुश्किल काम हो गया है | बच्चे मासूम होतें हैं, नासमझ होतें हैं, कोमल होतें हैं, प्यारे होतें हैं | इसी वजह से उनमे भगवान का वास नज़र आता है | जो लोग यह बात समझते हैं उन्हें बच्चों की पीड़ा देखकर बड़ा कष्ट होता है |
कई बार मासूमियत और नासमझी की वजह से बच्चे गलतियां कर बैठते हैं और आर्थिक नुकसान करवा देतें हैं | ऐसी स्थिति में हमें गुस्सा आ जाता है | कई बार पढाई - लिखाई में शिकायत मिलने पर भी हमें गुस्सा आ जाता है | कई बार बच्चों की शरारतों की वजह से हम अपने आप को अपमानित महसूस करतें हैं और इन्ही शरारतों और शिकायतों की वजह से हम बच्चों को अनुशासित रखना चाहतें हैं |
अनुशासन सीखने के लिए दंड स्वरुप हम मार -पीट का सहारा लेते हैं | कई बार तो लोग बच्चों की पिटाई इस कदर करतें हैं की उन्हें गंभीर चोंटें तक आ जाती है | याद करके देंखें क्या बचपन में आप से गलतियां नहीं हुई ? क्या बचपन में आपसे नुकसान नहीं हुआ ? क्या बचपन में मोहल्ले के लोग आपकी शिकायत लेकर आप के घर नहीं पहुंचे ? क्या स्कूल से आप की कभी शिकायत नहीं आई ?
और यदि शिकायत आई तो आप के साथ हुई मार- पीट का अनुभव कैसा रहा ? या कभी बिना मार -पीट के प्यार से आप को अनुशासन सिखाया गया वह आपको कैसा लगा ? मार -पीट किसी के भी साथ हो कुंठा, गुस्सा, द्वेष, ईर्ष्या जैसे अवगुण शायद यहीं से पनपते है | और ये अवगुण कभी भी अनुशासन का हिस्सा नहीं हो सकते | समय के साथ सोच को बदलना भी आवश्यक है | आपसी समझाईश, सूझ- बूझ प्रेम, प्यार से भी अनुशासन सिखाया जा सकता है | यदि आप ऐसा महसूस कर सकें तो | यदि आपको ये लेख पसंद आया हो तो like करें, share करें , follow करें और comment box में अपने सुझाव अवश्य दें |
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