गुस्सा एक स्वाभाविक क्रिया है गुस्सा दोस्त पर भी आ सकता है दुश्मन पर भी परन्तु अधिकतर लोग गुस्से का प्रदर्शन नफरत को शामिल करके करते हैं |
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जब गुस्से में नफरत शामिल हो जाती है तो वह गुस्सा गुस्सा नहीं रहता बल्कि हिंसा बन जाता है गुस्से में यदि प्रेम हो तो वह गुस्सा तुरंत उतर भी जाता है इसलिये गुस्सा करें लेकिन नफरत की जगह उसमे प्रेम को स्थान दे |
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गुस्सा करने वाले को भी समझाइये गुस्सा करें अवश्य लेकिन प्रेम भी जताये क्योंकि प्रेम ही एक ऐसी अदभुत चमत्कारिक शक्ति है जो हमे सच्चाई और ईमानदारी की तरफ ले जा सकती है | नफरत और गुस्से की बुनियाद अपराधों को जन्म देती है हिंसा को बढ़ावा देती है |
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