नाराजगी ज़ाहिर करने से दुश्मनी भी बदल सकती है दोस्ती में

नाराजगी मनुष्य का स्वाभाविक गुण है| जब कोई हमारी बात नहीं सुनता, हमारी बात नहीं मानता, हमारे दुख दर्द को नहीं समझता, हमें आर्थिक शारीरिक या मानसिक नुकसान पहुंचाता है, तो स्वाभाविक ,है नाराजगी जाहिर करनी पड़ती है|
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 नाराजगी हर रिश्तो में होती है| चाहे पति- पत्नी,हो बाप- बेटा हो ,भाई- भाई हो, सास- बहू हो, दोस्त -दोस्त, पड़ोसी- पड़ोसी, मालिक- नौकर लेकिन एक रिश्ता ऐसा होता है जिससे हम कभी नाराज होते ही नहीं है, और वह रिश्ता हे दुश्मनी का|
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हम दुश्मनों के सामने कभी नाराजगी जाहिर करते ही नहीं हैं| दुश्मनों से तो हम नाराजगी जाहिर किए बिना दुश्मनी निकालते हैं| या यूं कह लें जिनके सामने हम अपनी नाराजगी जाहिर नहीं कर सकते या तो हम उन्हें दुश्मन मान चुके हैं या वो हमें अपना दुश्मन मान चुके हैं|
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 जब दो व्यक्ति आपस में अपनी नाराजगी जाहिर नहीं कर रहे हैं, तो यह तय है, कि वहां दुश्मनी पल रही है| वहां एक दूसरे के प्रति मन में ज़हर इकट्ठा हो रहा है चाहे वह पति- पत्नी हो, भाई -भाई हो, बाप -बेटा हो ,सास -बहू हो, नौकर- मालिक हो, पड़ोसी- पड़ोसी हो, दोस्त- दोस्त हो|

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हम कब काँटे बो देते हैं हमें पता ही नहीं चलता| कब वह पौधा बन जाता है हमें पता ही नहीं चलता| जब तक पेड़ नहीं बन जाता हम उसे सींचते रहते हैं हमें कांटों का पता तब चलता है जब हमारे सींचे हुए पेड़ों का जंगल खड़ा हो जाता है, और हम उस जंगल से निकलने का प्रयास करते हैं लेकिन उन्ही काँटों की वजह से उलझकर निकल नहीं पाते हैं
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 किसी ने कहा है 'मैं अपने दोस्त से नाराज था| मैंने उसके समक्ष अपनी नाराजगी ज़ाहिर की, नाराजगी खत्म हो गई| मैं अपने दुश्मन से नाराज था, मैंने उससे कुछ नहीं कहा| मेरी नाराजगी और मुसीबतें बढ़ती गई| इसलिए नाराजगी खत्म करनी हो तो उसे दुश्मनों के सामने भी जाहिर करना सीखें |

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