जैसा खाओगे अन्न वैसा रहेगा मन ओर मन पर ही जीवन का आनंद निर्भर है।

                           खान पान  का लोगों  का अपना अपना नजरिया होता है
                         किसी को  खाने से  ख़ुशी मिलती है किसी को   खिलाने से
                                 लेकिन दोनों में मन का होना बहुत जरूरी है
                        मन से खाने और खिलाने में परम आनंद का एहसास होता है  

कहा जाता है जैसा खाओगे अन्न वैसा रहेगा मन ओर मन पर ही जीवन का आनंद  निर्भर है। क्योकि मन ही हमें दुखी करता है मन ही हमें सुखी मन ही हमें परेशानियों मे डालता है मन ही समस्याओं से निकालता है मन ही दुविधा में फँसाता है मन ही दुविधा से सुलझाता है। जिस व्यक्ति ने मन पर विजय पा ली उसने समस्याओं के रहते भी जीवन जी लिया अपने मन को प्रसन्न रखकर हम दूसरों के मन को खुशी दे सकते हैं। और दूसरों को खुशी देने से बड़ा सुख कोई और हो नही सकता रही बात भोजन की तो मन को प्रसन्न रखने में खाने का बड़ा महत्व है।

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       यदि हम पोष्टिक भोजन ग्रहण करेंगे तो हम स्वस्थ रहेंगे शरीर स्वस्थ रहेगा अक्सर हम भोजन को स्वाद की द्रश्टि से ग्रहण करते हैं स्वास्थय की दृषि्ट से नही यह सच है कि स्वादिष्ट भोजन हमे खाने मे अच्छा लगता है परन्तु स्वस्थ शरीर के लिए स्वाद के साथ साथ पौष्टिकता भी जरूरी है यह जरूरी नही कि हम बादाम, काजू, घी, दूध से भोजन को पौष्टिक बनाए हम कम खर्चे में सब्जियों तथा विभिन्न प्रकार के अनाजों से भी भोजन को पौष्टिक बना सकते है। और सन्तुलित आहार ग्रहण कर सकते हैं किन्तु इसके लिए हमें जानकारी हाँसिल करते रहना चाहिए ।
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      यह तो हुई हमारे लिए भोजन की बात हमें दूसरों के भोजन का भी ध्यान रखना चाहिए। दुनिया में आज भी करोड़ों लोग हैं जिन्हे भर पेट भोजन नसीब नही होता और जिन्हे नसीब होता है वह इसे व्यर्थ कर देते हैं। घर में भोजन बनाते वक्त परिवार के अलावा  एक व्यक्ति से अधिक का अतिरिक्त भोजन न बनायें। खाने में एक बार में  अधिक भोजन नही लें आवश्यकता पड़ने पर दोबारा ले लें।
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    यही बात कहीं बाहर शादी विवाह में अथवा रिश्तेदारी में जाने पर ध्यान रखें एेसा करना आपकी सभ्यता का परिचायक तो है ही साथ ही अन्य लोगों के खाने की व्यवस्था को बनाने में मददगार होगा। बच्चों को विशेष रुप से हिदायत दें ताकि अनावश्यक व्यर्थ न हो अक्सर देखने में आता है कि लोग शादी विवाह में अनावश्यक खाना अपनी प्लेट में रख लेते हैं और फिर झूठन छोड़ देते हैं इस पर नियंत्रण आवश्यक है।
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      हो सकता है भोजन बचने पर एेसे व्यक्तियों के काम आ जाएे जिन्हें स्वादिष्ट भोजन कभी नसीब ही न हुआ हो। एक महत्वपूर्ण बात जब हम निमंत्रण देकर लोगों को भोजन पर बुलाते हैं उनकी आव-भगत करते हैं मान-मनुहार में कमी नही रखते हैं। यथाशक्ति हम उन्हें अच्छा से अच्छा भोजन उपलब्ध कराने की कोशिश करते हैं। किन्तु कभी-कभी कुछ बिन  बुलाए व्यक्ति भी भोजन करने आ जाते हैं जिन्हें हम भगा देते हैं
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      याद रखें बिन  बुलाए व्यक्ति वो हैं जिन्हें हकीकत में भोजन की आवश्यकता है। हम  इतने लोगों को निमंत्रण देकर बुलाते हैं और चंद एेसे  लोगों को भोजन से रोक देते हैं जो गरीब हैं बेसहारा हैं वास्तव में भोजन की आवश्यकता उन्हें होती है। एेसे लोगों को सम्मानपूर्वक भोजन कराएें क्या  पता कौन कब क्या आशिर्वाद दे जाएे?

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