किताबी ज्ञान के साथ- साथ मानवीय और सामाजिक मुल्यों का विकास कर अपनी कॉलेज यात्रा को स्वर्णिम बनाया जा सकता है

स्कूली जीवन  और कॉलेज जीवन में कुछ समानता  होती  है, कुछ असमानता |  स्कूली जीवन जहाँ  समय की पाबंदी ,दैनिक उपस्थिति, ड्रेस कोड, टीचर्स की नज़दीकी, होम वर्क का  तनाव बच्चे को स्कूली होने का एहसास कराता है |  स्कूलो में   पिंजरे के पंछी  तरह बच्चे फड़फड़ाते नज़र आतें हैं |  जैसे ही वे कॉलेज की दहलीज पर कदम रखते है ख़ुशी के मारे   उन्मुक्त गगन में पंछी की तरह चहकने और पंख फैलाकर उड़ने का मन करता है   | 
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 200 वर्षों की अंग्रेज़ों की गुलामी के बाद प्रथम स्वतंत्रंता दिवस मनाने पर जिस ख़ुशी  का एहसास लोगो को हुआ था वही एहसास  स्कूल से कॉलेज में पहुंचने पर विद्यार्थियों  को  होता नज़र आता है |  जो बच्चे इस स्वतंत्रंता का यूज़ करना चाहते हैं वो उड़ना तो चाहते हैं    लेकिन अपनी सरहदों को ध्यान में रखकर |  
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 कई विद्यार्थी इस स्वतंत्रता से , मिसगाइड  होते हैं वे इसका मिसयूज करते हैं और खुद भी दुर्घटनाओं का शिकार होते हैं दूसरो को भी दुर्घटनाग्रस्त करते हैं |  स्कूली जीवन में हम अपने माता पिता के सपनो को पूरा करते हैं |  अपने सपनो को पूरा करने की शुरुआत कॉलेज लाइफ से होती है , जहां हमारी सोच समझ, पढाई -लिखाई  के साथ- साथ हमारी व्यक्तिगत लाइफ के बारे में भी  बनती है |
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  यही समय हमारे व्यक्तित्व के निर्माण का होता है, हमारी पहचान बनाने का होता है,  ,  पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभाने का भी होता है | यही समय हमारी मौज मस्ती का भी होता है ,  हमारे शैक्षणिक  जीवन की सबसे कड़ी तपस्या का समय कॉलेज जीवन ही होता है | 
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 अधिकतर नाज़ुक मसलो को हल करने की चुनौती कॉलेज लाइफ में ही होती है |  माता -पिता के मान सम्मान प्रतिष्ठा की पूंजी को हम इसी दौर में घटा बढ़ा सकते हैं |  यही वह समय होता है जब हमारे निर्णयों से हमारा भविष्य  प्रभावित होता है |  किताबी ज्ञान के साथ- साथ मानवीय और सामाजिक  मुल्यों  का  विकास कर अपनी कॉलेज यात्रा को स्वर्णिम बनाकर  कॉलेज लाइफ का भरपूर आनंद लिया जा सकता है अपने और अपने परिवार की मान सम्मान प्रतिष्ठा को बुलंदी पर पहुचाया जा सकता है | और अपने कैरियर  को बनाया भी जा सकता है तो बिगाड़ने  के जिम्मेदार भी विद्यार्थी स्वयं ही होते है भले ही इसके लिए वो दोष किसी को भी देने के लिए स्वतंत्र है परन्तु इस उम्र में  इतनी तो सोच उनकी बन ही जाती है की अपने बारे में में तो वो जान ही सकते है  जबकि अक्सर अपने आप को जाने बिना  दूसरो को जानने  का प्रयास सारी  उम्र करते रहते है  | 

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