हम बच्चो को मत बहकाओ
धर्म और आतंक की इस लड़ाई में एक बच्चे की पीड़ा जो कविता के जरिये होली और ईद के त्योहारों में भाई चारे की उम्मीद जगाती है
हम तो होली मना रहे हैं रंगों और गुलालों की
मेरे पापा खेल रहे हैं होली लहू के रंगों की
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पूछ रहा है एक ये बेटा उन आतंकी जल्लादों से
धर्मों को ऊंचा ले जाकर तुम कैसे उठ पाओगे ?
फिर धर्मों की सीढ़ी चढ़कर कहाँ आकाश बनाओगे ?
पैर जमीन पर रखकर ही तो सीढ़ी चढ़कर जाओगे ?
बिखरे लहू के कतरे कतरे सीढ़ी कहाँ लगाओगे ?
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त्योहारों का देश है मेरा सब धर्मों को संदेश है मेरा
असलम मियां दोस्त है मेरा भानू पंडित प्रिय है उसका
मेरी होली नहीं मनी तो क्या असलम खुश हो जायेगा?
उसकी ईद नहीं मनी तो मैं कैसे खुश हो पाऊँगा?
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मेरी गुजियों की खुशबू जब उसके घर को जाती है
उसकी अम्मी सेवइँ लेकर मेरे घर पर आती है
मेरी मम्मी उसकी अम्मी जब त्यौहार मनाती है
दुनिया भर की सारी खुशियां दोनों घर में आती है
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हम बच्चों को मत बहकाओ धर्मों की खिल्ली न उड़ाओ
बंद करो ये लड़ना लड़ाना तोप तमंचों को गर्जाना
बंद करो यह लहू बहाना हम बच्चों को है देश बचाना
हम तो होली मना रहे हैं रंगों और गुलालों की
मेरे पापा खेल रहे हैं होली लहू के रंगों
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