हम बच्चो को मत बहकाओ


धर्म और आतंक की इस लड़ाई में एक बच्चे की पीड़ा जो कविता के जरिये  होली और ईद के त्योहारों में भाई चारे की उम्मीद जगाती है 

 हम तो होली मना रहे हैं रंगों और गुलालों की
मेरे पापा खेल रहे हैं होली लहू के रंगों की

                       https://goo.gl/images/c861jE

पूछ रहा है एक ये बेटा उन आतंकी जल्लादों से
 धर्मों को ऊंचा ले जाकर तुम कैसे उठ पाओगे ?
फिर धर्मों की सीढ़ी चढ़कर कहाँ आकाश बनाओगे ?
पैर जमीन पर रखकर ही तो सीढ़ी चढ़कर जाओगे ?
बिखरे लहू के कतरे कतरे सीढ़ी कहाँ लगाओगे ?

.https://goo.gl/images/bDqb74


त्योहारों का देश है मेरा सब धर्मों को  संदेश है  मेरा
असलम मियां दोस्त है मेरा भानू  पंडित प्रिय है उसका
मेरी होली नहीं मनी  तो क्या असलम खुश हो जायेगा?
उसकी ईद नहीं मनी  तो मैं  कैसे खुश हो पाऊँगा?

.https://goo.gl/images/HR3hxo

मेरी गुजियों की खुशबू जब उसके घर को जाती है
उसकी अम्मी सेवइँ लेकर मेरे घर पर आती है
मेरी मम्मी उसकी अम्मी जब त्यौहार मनाती है
दुनिया भर की सारी  खुशियां दोनों घर में आती है

.https://goo.gl/images/9RXGZS

हम बच्चों को मत बहकाओ धर्मों की खिल्ली न उड़ाओ
बंद करो ये लड़ना लड़ाना तोप  तमंचों को गर्जाना
बंद करो यह लहू बहाना हम बच्चों को है देश बचाना
 हम तो होली मना रहे हैं रंगों और गुलालों की
मेरे पापा खेल रहे हैं होली लहू के रंगों

                                                      LIKE SHARE AND SUBSCRIBE

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

बेटी हिंदुस्तान की

आधुनिक और प्राचीन जीवन का असमंजस

मनुष्य एक प्राकृतिक उपहार है लेकिन मशीनी होता जा रहा है