त्याग मनुष्य का बहुत बड़ा गुण है | त्याग करना यानि छोड़ना | बुराइयों को छोड़ना, बुरी बातों को छोड़ना , बुरे कर्मो को छोड़ना, बुरी आदतों को छोड़ना , अपने स्वार्थ को छोड़ना | आज हम त्याग का सही अर्थ ही भूल चुके हैं और हर व्यक्ति के जीवन में दुःख आने और समस्याएँ बढ़ने का मूल कारण भी यही है | हम त्याग उन चीज़ो का कर रहे है जिनका त्याग हमे नहीं करना चाहिए |
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मसलन हम त्याग कर रहे है अच्छाईयों का | हम त्याग कर रहे है अच्छी बातों का, हम त्याग कर रहे है अच्छे कर्मो का, हम त्याग कर रहे है अच्छी आदतों का | सबसे महत्वपूर्ण है हमारे स्वार्थ का त्याग करना | जिसका हम त्याग नहीं कर रहे है क्योकि हम कोई त्याग भी तभी करने को तैयार होते है जब हमारा उस त्याग से कोई स्वार्थ पूरा होता हो | यह सच है की हर इंसान का किसी न किसी काम में स्वार्थ होता है लेकिन जिस त्याग को आप अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए कर रहे है वह त्याग नहीं कहलाता है |
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यदि आप वास्तव में त्याग करना चाहते है तो कोई भी बात निस्वार्थ कहे , कोई भी काम निस्वार्थ करे , किसी के साथ यदि अच्छा कर रहे है तो निस्वार्थ करे , किसी को अच्छी आदत सिखा रहे है तो निस्वार्थ सिखाये | जब हम किसी के लिए कोई भी काम करते है तो हम उससे कुछ अपेक्षाएं पाल लेते है और त्यागी होने का एहसास कराते रहते है |
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यही एक बात आपको त्यागी होने से रोके हुए है | सोच कर देखिये दुनिया में हर कोई किसी न किसी के लिए कुछ नहीं बहुत कुछ अच्छा करता है और यही हमारा सबसे बड़ा त्याग होता है | लेकिन जो लोग वक्त बेवक्त अपने त्यागी होने का एहसास अपने स्वार्थ के लिए करातें रहते है वह अपनी सभी अच्छाईयों पर पानी फेर लेते है | जो लोग निस्वार्थ अपना प्रयास जारी रखते है वो त्यागी और महापुरुष कहलाते है |
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