अपने मन को पीने लायक पानी की तरह बनाकर रखें

कहा  जाता है जल ही जीवन है |  मानते भी सभी यही  है , परन्तु अमल  करना बहुत मुश्किल होता है |  कुछ उदाहरणों से  इसे समझा जा सकता है |  साफ सफाई में जल का  योगदान महत्वपूर्ण होता है  | पानी से ही किसी भी चीज़ को शुद्ध  व  साफ़ किया जा सकता है | जिस तरह साफ़ सफाई करने में पानी का योगदान होता है  इसी तरह जीवन को शुद्ध रखने के लिए  मन का योगदान होता है  |
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 मन का  यूज़ पानी की तरह किया जाना चाहिए  इसे इस तरह से समझा जा सकता है  |   आप दो बर्तनो में पानी ले एक में बिलकुल  साफ़  शुध्द पानी दूसरे में गन्दा पानी  | जो साफ पानी है वो आपको पारदर्शी , स्वच्छ और निर्मल दिखेगा उसे आप खाने पीने में  यूज़ कर पाएंगे |  जबकि जो गन्दा पानी है उसे आप देखकर ही मुँह फेर लेंगे |  न वो पारदर्शी दिखेगा न स्वच्छ दिखेगा उस पानी को आप खाने पीने में भी  यूज़ नहीं कर पाएंगे क्यों  ? क्योंकि उसमे गंदगी मिले होने के कारण वह किसी काम का नहीं रह गया है |
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यही मनुष्य के साथ है मनुष्य के मन भी दो तरह के होते हैं एक  वह जो स्वच्छ पानी की तरह निर्मल शांत और पारदर्शी होता है जिसमे न अहंकार होता है न नफरत गुस्सा  कुण्ठा  होती  है इसी तरह का  मन   यूज़ करने लायक होता  हैं  | जबकि दूसरी तरह  का मन जिसमे नफरत ,कुंठा, गुस्सा ,दुनिया भर की गंदगी मिली होने की वजह से गन्दा , अपारदर्शी ,अस्वच्छ हो जाता है  ऐसे मन को  यूज़ नहीं किया जा सकता |  ऐसे मन   से जीवन के किसी भी उद्देश्य की पूर्ति  संभव नहीं है |  इसलिए अपने  मन को पीने लायक पानी की तरह बनाकर रखें ताकि उससे जीवन के उद्देश्यों की पूर्ति  सम्भव हो सके |

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