इन्ही बातो से तय होता है आप की कथनी और कहनी का फर्क


जैसा हम चाह  रहे है वो सम्भव भी है या नहीं

कोई भी काम जितना आसान लगता  है  उतना होता नहीं है |  जब  हम उसे खुद  करके  देखते  तब हमे हकीकत पता चलती है  | ऐस लिए हम किसी को भी कोई सलाह बहुत आसानी से दे देते है |  हम उसे कर पाए या नहीं लेकिन दूसरो से हम अपेक्षा रखते है ये तो बहुत आसान सा काम था ? इसलिए कोई भी बात मुँह से निकालने से पहले ये अवश्य देखें  की जो कुछ हम कह रहे है वो व्यवहारिक भी है या नहीं  |  जैसा हम चाह  रहे है वो सम्भव भी है या नहीं |  जो अपेक्षा हम दूसरो से रख  रहे है उस पर हम भी खरे उतरेंगे या नहीं | इन्ही बातो से आप की कथनी और कहनी का फर्क तय होता है  |

 ये कथनी  और करनी का फर्क इंसान की असफलता तय करता है

इंसान की कथनी और करनी का फर्क नजर तब आता  है जब वह  करता कुछ है कहता कुछ है |  चाहता कुछ है और मन में कुछ और छुपा के रखता है |  ये कथनी  और करनी का फर्क इंसान की असफलता तय करता है | जो लोग अपनी कथनी और करनी के फर्क को नहीं समझ पाते है वो जीवन में कभी किसी का भरोसा नहीं जीत पाते है |   उसका यही स्वभाव लोगों के बीच  प्रतिष्ठा बनाने में बाधक होता है  | उस इंसान की प्रतिष्ठा हमेशा बनी रहती है जो अपनी कथनी के अनुसार अपने कार्य को अंजाम देता है ,  अपने वचन पर टीका  रहता है |  ये  अलग बात है  किसी बड़ी वजह या परिस्थिति के विपरीत होने के कारण अपनी  कही  गई  बात पर नहीं रह पाना  सम्भव ना हो |  परन्तु उसका यह अर्थ भी नहीं है की उसकी कथनी में फर्क कहा  जाये |

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  दूसरो के भरोसे पर बात कहना हमेशा कथनी को बिगड़ देता है 

कथनी का फर्क तब कहा  जाता है जब कोई बार- बार अपनी कही  बात से मुकर जाए |  या बार- बार उसके लिए वो दूसरों  को दोषी ठहराए  | इसलिए इंसान को वही  करना चाहिए जो वो खुद के भरोसे पर कर सकता हो, या खुद के दम  पर करने का माद्दा रखता हो  |  दूसरो के भरोसे पर बात कहना हमेशा कथनी को बिगड़ देता है |  सिर्फ ख्याली पुलाव पकाना  या शेख चिल्ली की तरह असम्भव बात को करने के लिए हाँ कहना आपके लिए नुक्सानदायक हो सकता है  | कोई भी बात तथ्यों पर आधारित कहें  तर्क संगत और व्यवहारिक बात हमेशा आप की कही  गयी बात को सही साबित करेगी |  जबकि तर्क हीनऔर अव्यवहारिक बात आपकी उपलब्धियों को भी नीचे  गिरा देगी | लोगो के बने बनाये  विश्वास को तोड़ देगी |

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 लोग अपनी कही  बात से तुरंत पलट जाते है 

जिस तरह किसी भी चीज को बिगाड़ना बड़ा आसान होता है लेकिन बनाना बड़ा मुश्किल होता है |  चाहे वो रिश्ते हो या विश्वाश ये दोनों ही अक्सर बिगड़ते है तो हमारी कथनी और करनी के  फर्क की वजह से | आज लोगो के आपसी रिश्ते बिगड़ने की कई  वजहें  है परन्तु उनमे से एक वजह यह  भी है लोग अपनी कही  बात से तुरंत पलट जाते है  |  की बार स्वार्थ की वजह से तो कई  बार परिस्थिति की वजह से |  कई  बार चाहते हुए भी हम हमारी बात पर नहीं रह पाते  है |  परन्तु इसकी वजह से निराश, हताश, उदास होने की जरूरत नहीं  है |




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 ईमानदाराना प्रयास  भी आपकी कथनी का गवाह बन  सकता है

जितना सम्भव हो सके उतना प्रयास अपनी  बात  पर रहने का ईमानदारी से  करते रहे यह ईमानदाराना प्रयास  भी आपकी कथनी का गवाह बन  सकता है |  लेकिन यदि आप अवसर वादी बन कर अपनी गलती या अपने दोष दूसरों पर रोपित करेंगे तो वो भी आपकी कथनी के लिए नुक्सान दायक हो सकता है  | इसलिए प्राण जाये पर वचन न जाये वाली कहावत भले ही सिद्द नहीं करे |  परन्तु इतना विश्वास अवश्य दिला दे की सामने वाला आपकी मजबूरी या परिस्थिति को समझ कर  आपके प्रयासों की सराहना करें  |




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