दिवाली पर आवश्यकता प्रकाश को समझने कि नहीं बल्कि आवश्यकता तो अन्धकार को समझने की है
दीपावली प्रकाश पर्व के रूप में मनाया जाता है इसे बताने या समझने और समझाने की शायद इतनी आवश्यकता नहीं है | दिवाली पर आवश्यकता प्रकाश को समझने कि नहीं बल्कि आवश्यकता तो अन्धकार को समझने की है | क्योंकि जिस अन्धकार को दूर करने के लिए हम प्रकाश की बात करते है उसे समझना कोई नहीं चाहता | दिवाली पर हम हमारे घरो की साफ़ सफाई करते है, घरों को रोशन करते है, परन्तु जो अन्धेरा हमारे मन में है उसके उजलेपन के लिए हम मन की सफाई तक करने को तैयार नहीं है | हम चाहे कितने ही दीये जला लें घरों को कितना ही साफ़ सुथरा रख लें परन्तु यदि हमारे मन की गंदगी को दूर करने में असमर्थ है तो बाहरी साफ़ सफाई और रोशनी की सार्थकता पर प्रश्न चिन्ह लगना स्वावाभिक है | अक्सर हम एक ही पहलू पर विचार करते है दूसरे पहलू पर हमारी नजर तब पड़ती है जब तक कि हम एक पहलू से उपजी समस्या से पूरी तरह घिर नहीं जाते है | इसी वजह से दुनिया की दौड़ में अधिकतर लोग हाँफते - काँपते निराश, मायूस, हताश होकर थक हार कर बैठ जाते है | जो हमारे जीवन की सबसे बड़ी विडंबना है |
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हम दिवाली के पर्व को ही लेलें दीपावली मनाने के पीछे हमारा मुख्य उद्देश्य भगवान राम के घर लौटने की खुशियां मनाना नहीं रहा गया | बल्कि हमारे स्टेट्स को दिखाने के लिए घरो की सजावट और लाइटों के माध्यम से घरों को सुसज्जित कर लोकप्रियता हासिल करना रह गया है | इसके लिए हम करोड़ो रूपये के पटाखे और बिजली फुँकने को भी तैयार है | हमे इस बात से कोई मतलब नही है कि यह पर्व मन के अँधेरे को दूर करने ,मन की भ्रांतियों को दूर करने, पारिवारिक सामाजिक कुरीतियों को मिटाने, हमारे मन के अंदर छिपी हुई बुराइयों को दूर कर उनमे सुधार करने, गलतियों को मान कर क्षमा याचना करके अपने आप को अन्धकार से निकाल कर हर्ष उल्लास से खुशियाँ मनाने का है | ना की दीये जला कर या बिजली की रौशनी से अन्धकार दूर करने का | दिवाली पर दीपक जलाना अंधकार को दूर करने या खुशियां मनाने का प्रतीक जरूर हो सकता है | हम चाहें तो मन के अन्धकार को दूर करने के लिए उस दीपक की रौशनी का सहारा ले कर अपनी आँखों की दृष्टि से ,कानों के माध्यम से, तथा अपने मस्तिष्क की संवेदनाओं के जरिये जहां चाहे वहाँ तक रौशनी पहुंचा सकते है | इसी तरीके से हमारे और दूसरों के मन के अन्धकार को दूर किया जा सकता है |
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परन्तु आज सवाल यह है की जब तक हम अपने मन के अन्धकार को दूर नहीं करेंगे दूसरों तक उसका उजाला नहीं पहुंच पायेगा | हजारो दीये जलाकर करोडों रूपये की बिजली फूंक कर हम बाहरी वातावरण को प्रकाशित कर सकते है, घर को प्रकाशित कर घर का अन्धेरा दूर कर सकते है | परन्तु मन का अन्धेरा प्रेम ,अपनापन, त्याग, भाईचारे के बिना दूर नहीं किया जा सकता | सोच कर देखें क्या दिनों दिन सामाजिक और पारिवारिक हर्षोल्लास कम नहीं होता जा रहा है ? क्या हर व्यक्ति के जीवन में हताशा, निराशा , गुस्सा तनाव ने गहरे घाव नहीं बना लिये है ? क्या जीवन की सुख शांति और सुकून की तलाश में हर व्यक्ति भटकाव महसूस नहीं कर रहा है ? क्या शिक्षा, चिकित्सा, विज्ञान और सुख सुविधाओँ में आशातीत प्रगति की बावजूद लोग अपने आप को ठगा सा महसूस नहीं कर रहे है ? क्या हमारे अथक प्रयासों के बावजूद हम अपने परिवार के लोगो को भी संतुष्ट करने में कामयाब हो पा रहे है ? यदि इनमे से एक भी प्रश्न का उत्तर हाँ में हो तो हमारे दीपावली मनाने के मकसद की सार्थकता साबित हो सकती है | वरना परम्पराओं के नाम पर हम आर्थिक बोझ के तले दबते जा रहे हैं | पर्यावरण को प्रदूषित कर बीमारियां और तनाव पैदा करते जा रहे है |
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जब तक हम परम्पराओं के सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व को समझे बिना खुशियों के दीप प्रज्वलित करते रहेंगे बाहरी वातावरण हमें जगमगाता नजर आएगा | जो आज हमें साफ़ दिखाई दे रहा है | जो कुछ हम देख रहे है यह ऊपरी आवरण है | किसी के मन में क्या है लाख कोशिशों के बाद भी पता नहीं चल पता है ? इस नकाब के पीछे मन का ही अन्धकार है | वास्तव में जो मन में होता है वो चेहरे पर नहीं होता और जो चेहरे पर होता है वो मन में नहीं होता है | यही नकाब अंधकार कहलाता है जिसे समझ पाना बड़ा मुश्किल है | इस दीपवली संकल्प लें अपने मन और चेहरे को एक सार करे | ताकि लोग आपके चेहरे से मन को पढ़ सकें | कुछ निर्णय अपने लिए ले सके कुछ दूसरों के लिए |
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