पर्यावरण का ब्याज चुकाने पर मजबूर होना पडेगा

पर्यावरण का ब्याज चुकाने पर मजबूर हो जायेंगी  आने वाली  पीढ़ियां

दोस्तों आज कोरोना वाइरस दुनिया के कोने कोने में फेल  चुका है  मुश्किल घड़ी से   दुनिया का हर  देश जूझ रहा है |    

आज पर्यावरण के प्रति जो उदासीनता हम बरत रहे है जो लापरवाही हम कर रहे है  जो जिम्मेदारी हम नहीं समझ रहे है जिन स्वार्थों  की खातिर हम पर्यावरण को बिगाड़  रहे है जिन बातो को हम बहुत हल्के में ले रहे है उनसे आने वाली पीढ़ी को पर्यावरण का ब्याज चुकाने पर  मजबूर होना पडेगा  और निश्चित रूप से आने वाले समय में करे कोई भरे कोई वाली कहावत चरितार्थ होने जा रही है | प्लास्टिक के कचरे तथा पर्यावरण के प्रति उदासीनता के चलते पर्यावरण प्रभावित हो चुका है | जिसका असर हमारे स्वस्थ पर देखा जा सकता है, जीवन पर देखा जा सकता है | नई- नई बीमारियां फैलना पर्यावरण प्रभावित होने का ही नतीजा है |

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कोई और तो करता नहीं फिर हम ही क्यों करे ?

जो पैसा आज हम कमा रहे है उसका अधिकतर हिस्सा हम प्राकृतिक नुकसान को समर्पित कर रहे है |  हम बच्चो की पढ़ाई लिखाई परअथाह धन दोलत खर्च कर उन्हें कमाई बढ़ाने कमाई करने के लिए प्रेरित करते है | परन्तु इन बातो के लिए प्रेरित नहीं कर पा रहे है जिनमे हम फिजूल ही हमारा धन खर्च कर देते है |  पैसा बचना भी पैसा कमाने से कम नहीं है,  यह हम क्यों भूल जाते है  ? हम पैसा कमाना चाहते है ताकि घर में भविष्य में यदि कोई बीमार हो जाये तो उसका अच्छे से इलाज महंगे से महंगे हॉस्पिटल में करवाया जा सके |  उसके लिए हम मेडिक्लेम पॉलिसी पर भी हजारों रुपया खर्च कर देते है | किन्तु जिन वजहों से हम बीमार हो रहे है,  तनाव झेल रहे है,  दुखी हो  रहे है उन पर काम करने को तैयार नहीं है | हम पैसा कमाने के लिए पैसा गंवा  कर उसके नुकसान को बर्दाश्त भी कर लेते है | लेकिन हमारे स्वास्थ के लिए पर्यावरण को बचाने पर पैसा खर्च करने की बात हो तो वो हमे बड़ा नुकसान लगने लगता है |  उसमे हम सोचा विचारी करने लगते है की कोई और तो करता नहीं फिर हम ही क्यों करे ?

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 यह सोचे की कोई करे या ना करे मुझे पर्यावरण के नुकसान को बचना है

 ये हम ही क्यों करे ने  हमे  बहुत सी जिंम्मेदारियो से बड़ी आसानी से  मुक्त कर दिया है | फैशन से लेकर खान- पान मौज- मस्ती पर लोग  हजारो रुपया खर्च कर देते है परन्तु जहां सामूहिक खर्चे की बात आती है सामूहिक हित की बात आती है चाहे वो परिवार में हो या समाज में हम दो रूपये खर्च करने का भी हिसाब लगाने लगते है  |  मैं  ही क्यों ज्यादा खर्च करूं  ? हमारी यही  सोच सामाजिक  और पारिवारिक जिम्मेदारियों के निर्वहन में सबसे बड़ी बाधा बनी हुई है |  यही वजह  है  कि अधिकतर लोग  पर्यावरण को अपनी जिम्मेदारी मानने को तैयार नहीं है |  यदि आज हर व्यक्ति पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारी ईमानदारी से निभाने लगे यह सोचना बंद कर दे की दूसरे अपनी जिम्मेदारी निभाये  तब में अपनी जिम्मेदारी निभाऊं | बल्कि   यह सोचे की कोई करे या ना करे मुझे पर्यावरण के नुकसान को बचना है , मुझे पर्यावरण बचने में सहयोग करना है | तब कही  जाकर पर्यावरण  से उपजी समस्याओं  के निदान हो पाएंगे |

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 इसलिए जरूरी है सोच बदलना 

  यदि आप पर्यावरण को  स्वास्थ्य का सबसे बड़ा जरिया मानते है, चेहरे को चमकता हुआ देखना चाहता है परिवार की  सुख समृद्धि और खुशहाली चाहते है   तो अपनी सोच बदले |  जितना सम्भव हो अपना सहयोग तन, मन, धन से पर्यावरण को बचने में लगाये | आज पर्यावरण को किया गया तन, मन ,धन का समर्पण आगे आने वाली पीढ़ी को तन, मन ,धन ब्याज़ सहित लोटा देगा  | वार्ना यह कर्ज उस बनिये के कर्ज की तरह हो जायेगा जो जीवन भर ब्याज वसूलते- वसूलते मूल की परवाह नहीं करता |  आने वाली पीढ़ी इसी का  ब्याज चुकाने में अपना जीवन बिता देगी | दैनिक जीवन की बहुत चीजें  आज भी हम पर्यावरण फ्रेंडली बना सकते है |  हमारे छोटे- छोटे प्रयास भी बड़ी भागीदारी निभा सकते है |  सोचने पर वक्त गवाएं बिना अपने आस- पास से आज ही शुरू करे |


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