यदि समाज को बदलना चाहते है तो शुरुवात अपने स्वयं से करें
हर कोई समाज में बदलाव चाहता है | समाज में बदलाव की आवश्यकता हर कोई महसूस कर रहा है | परन्तु यह कोई सोचने और समझने को तैयार नहीं की समाज हम से या हमारे जैसे लोगो से मिल कर ही बना है | अपराध भी हम जैसे लोगो में से कोई ना कोई करता है | परन्तु जब तक उसके प्रमाण नहीं हो कोई अपने आप को अपराधी मानने के लिए तैयार ही नहीं होता है | बल्कि प्रमाण मिलने के बाद भी अपने आप को सही साबित करने के लिए दूसरो को भ्रमित करते रहना एक चलन सा हो गया है | ऐसा नहीं है कि अपराधी प्रवृति के लोग हमारे परिवार या पड़ोस में नहीं होते या हम उनसे परिचित नहीं होते | परन्तु रिश्ते नाते , स्वार्थ , मजबूरियां, भय, स्वभाव, परिस्थितियां ऐसे कारण है जिनकी वजह से हम अक्सर अपराध को छिपाने या अपराधी की मदद को तैयार जाते है | यह बहुत बड़ा सच है | चाहे तो आप यह बात आजमाकर देख लें |
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इसलिये समाज में यदि बदलाव लाना चाहते है तो सिर्फ क़ानून बनाने से या उसे सख्ती से लागू करने से काम नहीं चलेगा | क्योंकि आज भी हम अपराधियों को खत्म करने की सोच रहे है अपराध को नहीं | अपराधी अपने बचाव के लिए और भी अपराध कर सकता है या दूसरों को भी अपराध करने के लिए मजबूर कर सकता है | क़ानून पर क़ानून कितने बनाये जाएंगे ,पुलिस कितनी लगाएंगे, कितने लोगो को फांसी पर लटकाएंगे, यदि आंकड़े इक्क्ठे किये जाए तो हर घर परिवार में एक दो लोग मिल जायेगे जो कानून की जद में होंगे | कोई अपने स्वार्थ के लिए या कोई प्रतिशोध की आग में अपराध करने की तैयारी कर रहा होगा | कोई किसी निरपराधी की जान बचाने के लिए अपराध करने जा रहा होगा | कोई अपने हक की लड़ाई के लिए ही अपराध का सहारा ले रहा हो |
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पेशेवर अपराधियों को छोड़ दिया जाये तो अधिकतर लोग ऐसे मिलेंगे जो नहीं चाहते हुए अपराध की दुनिया में कदम रखने पर मजबूर हो जाते है | गंभीर अपराधों छोड़ दिया जाये तो भी छोटे मोटे कानूनों को तोड़ने की लिस्ट ईमानदारी से बनाई जाए तो आप खुद अपने दिल पर हाथ रख कर एक मिनट के लिए देखें | और हमारे देश कानूनों की सूचि देखे | शायद बहुत कम लोग ऐसे होंगे जिन्होंने कभी ना कभी देश के कानूनों की अवहेलना नहीं की हो | हर परिवार में चाहे स्त्री हो या पुरुष कोई ना कोई गलत राह पकड़े हुए है | कोई ना कोई अड़ियल रवैया अपनाये हुए है | बहुत कम परिवार होंगे जिनमे स्त्री पुरुष के विवाद ना हो | कहीं पति पत्न्नी के झगड़े, तो कही सास बहू की लड़ाई , कही प्रेमी प्रेमिका का चक्कर ऐसे में स्त्री पुरुष की मानसिकता तो एक दूसरे के विपरीत होनी ही है |
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एक दूसरे के प्रति क्रोध कुंठा को समझने वाले और इनका समाधान निकालने के लिए स्त्री पुरुष में प्रेम प्यार मोहब्बत का होना और इसको समझना बहुत जरूरी है | जहां द्वेषता और कुंठा पलती रहती है वहां घर में गाली गलोच हिंसा का माहौल बनता है | जो लोग इनसे प्रभावित है या जिन्हे घर में प्यार मोहब्बत नहीं मिल पाता वो लोग इन्हे बाहर ढूंढ़ते है | सोच कर देखे जब किसी को बहुत भूख लगी हो और उसे खाना नहीं मिले तो जो कुछ उसे मिलता है चाहे वो सड़ा गला ही क्यों ना हो | वह भूखे भेड़िये कि तरह उस पर टूट पड़ता है | ठीक उसी प्रकार स्त्री हो या पुरुष जब परिवार में प्यार मोहब्बत नहीं मिलता है , परिवार में विवाद हो , खुशनुमा माहौल नहीं मिलता हो तो स्वावाभिक है बाहर की चकाचोंध और आधुनिकता में हर कोई कृत्रिम खुशियाँ ढूंढता है |
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और यह तय है जो खुशियां परिवार के लोगो से मिलनी चाहिए वो बाहर बहुत कम लोगों को नसीब हो पाती है | अवैध संबंधो का बनना और फिर विवाद में पड़कर दुष्कर्मो की परिणीति होना इसी के परिणाम होते है | इनमे कुछ में सच्चाई हो सकती है | परन्तु अधिकतर में कानूनों से बचाव या अपनी गलतियों को छुपाने के लिए स्त्री पुरुष झूठ पर झूठ बोलने पर मजबूर हो जाते है | एक सच को छुपाने के लिए जाने कितने झूठ बोलने पड़ते है | मनगढ़न्त कहानियां बनानी पड़ती है |खून खराबे करने पड़ते है | हम दुनिया बदलने कानूनों की सख्ती कानूनों में बदलाव के बजाय परिवार रूपी संस्था को प्यार मोहब्बत सुख शांति से रहना सिखाएं | खुद भी सुखी रहे कुंठा, द्वेषता , अहंकार के समाधान उचित समय पर निकालें | गाली गलोच हिंसा से परिवार के सदस्यों को दूर रखेंगें तो बाहर भी इन हथियारों की जरूरत नहीं पड़ेगी |
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जब परिवारों में सभ्यता होगी समाज स्वतः ही सभ्य हो जाएगा | समाज में बदलाव की आवश्यकता हर कोई महसूस कर रहा है परन्तु बदलना कोई नहीं चाहता | यदि समाज को बदलना चाहते है तो शुरुवात अपने स्वयं से करें | अपने परिवार से करें दूसरों से नहीं | जो लोग दूसरों को देख कर स्वार्थी होने की कोशिश करते है परिवर्तन भी अपना स्वार्थ या लालच देख कर करते है उनकी अपेक्षा वो लोग ज्यादा खुश प्रसन्न और विनम्र होते है जो निस्वार्थ परिवर्तन करते है | ये बात अवश्य ध्यान रखें |
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