यदि आप गृहस्थ जीवन में है तो मत निकलिए सत्य की खोज में
गृहस्थ जीवन में सत्य की खोज की जगह समाधान की खोज करे
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यदि आप गृहस्थ जीवन में है तो मत निकलिए सत्य की खोज में | क्योकि कहा जाता है की सच कड़वा होता ह गृहस्थ जीवन में सच्चाई छिपाना या बयाँ करना दोनों ही घातक होते है | ज्यों ही हम सच की तरफ बढ़ते है दुःख, दर्द ,तनाव, कुंठा का सामना करना पड़ता है | इसलिए गृहस्थ जीवन में रह कर सत्य की खोज नहीं की जा सकती | गृहस्थ जीवन में सत्य की खोज की जगह समाधान की खोज करे | समाधान की खोज हमेशा रास्ते बनाती है | जबकि सत्य की खोज में आदमी जीवन भर भटकता रहेगा तो भी किसी निर्णय पर नहीं पहुंच पायेगा | क्योकि सच ऐसा चक्र्व्यू है जिसमे आदमी कहीं ना कही खुद भी उलझ जाता है | इसका यह अर्थ बिलकुल नहीं की आदमी को सच नहीं बोलना चाहिए या सच का साथ नहीं देना चाहिए | बल्कि सच को प्याज के छिलकों की तरह खोलना चाहिए ताकि परत दर परत समाधान हो |
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सच झूठ की इस खोज ने जीवन को कई बेड़ियों में बाँध दिया है
अक्सर हम सत्य को इस तरह से खोलते है की धरती आसमान दहल उठते है | जो परिवारों में बिखराव और तनाव का कारण बन जाता है | यदि आप अपनी गृहस्थी को हंसी ख़ुशी से चलाना चाहते है तो मनन और चिंतन के द्वारा समाधान निकलना ही सत्य की असली खोज है | आज के इस आधुनिक युग में यह तय कर पाना बड़ा मुश्किल हो गया है की स्त्री सही है या पुरुष पति सही है या पत्नी | हर घर में अलग अलग किस्म के लोग होते है सभी की सोच अलग होती है विचार अलग होते है | किसको कौनसी बात बुरी लग जाये कुछ भी नहीं कहा जा सकता | हर किसी को सच्चा या झूठा साबित करना बड़ा कठिन काम प्रतीत होने लगा है | चेहरे से उसके हाव भाव का पता लगाया जा सकता है | उसके मन में क्या चल रहा है इसका पता लगाना बड़ा मुश्किल है | जब हम हमारे नजदीकी लोगों के बारे में नहीं जान पाते है तो दूसरो के बारे में जानना बहुत ही कठिन है | सही गलत और सच झूठ की इस खोज ने जीवन को कई बेड़ियों में बाँध दिया है |
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कह दो तो प्रश्न उठता है कहा ही क्यों ? नहीं कहो तो भी प्रश्न उठता है कहा क्यों नहीं ?
आज हर व्यक्ति अपनी बात को सच साबित करने पर तुला है | कोई भी किसी दूसरे की बात को सच मानने को तैयार नहीं है | हमारी आँखों पर लगा अभिमान का यह चश्मा सच झूठ के फर्क को नहीं समझने दे रहा है | कितनी ही बाते परिवार में रिश्तो में रोजाना ऐसी होती है जो यदि किसी से कह दो तो प्रश्न उठता है कहा ही क्यों ? नहीं कहो तो भी प्रश्न उठता है कहा क्यों नहीं ? कोई काम घर की भलाई समझ कर कर दो तो प्रश्न उठ जाता है ये काम करना ही नहीं था ? नहीं करो तो प्रश्न खड़ा हो जाता है ये काम अब तक किया क्यों नहीं ? स्पष्ट बोल दो तो स्पष्ट नहीं बोलना चाहिए था ? नहीं बोलो तो ये तो कभी अपनी बात स्पष्ट बोलता ही नहीं ? आखिर इंसान करे तो क्या करे ?
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यदिअदालते सिर्फ सच्चाई और सबूतों के आधार पर ही सजा देती तो हमेशा गुनहगारों को ही सजा होती
इस लिए सत्य की खोज से परे रहकर व्यवहारिक जीवन कला को अपनाये | जहां थोड़े बहुत झूठ सच से बात बनती है वहां बात बनाने का प्रयास करे जहां बिगड़ती है वहां सच का प्रयोग ही आखरी रास्ता है | सच बोलने के चक्कर में किसी को नीचा दिखाना जरूरी नहीं होता है | यदि अदालते सिर्फ सच्चाई और सबूतों के आधार पर ही सजा देती तो हमेशा गुनहगारों को ही सजा होती | परन्तु आज भी ना जाने कितने बेगुनाह बेवजह सजा भुगत रहे है | सबूतों और गवाहों के आभाव में बेगुनाही साबित करने के लिए कानूनी लड़ाईया लड़ रहे है | इसलिए घर गृहस्थी में उपजे विवादों का समाधान मिल बैठकर आपसी सोच समझ से निकाले सत्य की खोज में समय व्यर्थ नहीं करें |
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