इंसान सिर्फ अपने तक ही सीमित क्यों होता जा रहा है ?
इंसान सिर्फ अपने तक ही सीमित क्यों होता जा रहा है ?
इस सोच के साथ हमने शिक्षा ,खेलकूद ,राजनीति हर क्षेत्र में लड़के और लड़कियों को आगे बढ़ने के मोके देना प्रारम्भ किया | शिक्षा और अपने बच्चों की सुविधाओं के लिए भले ही हमने अपने रिश्तो को सीमित करना शुरू कर दिया हो परन्तु हमने नजदीकी रिश्तों से भी दूरी बनानी शुरू कर दी और हमारा ध्यान सिर्फ बच्चों की शिक्षा उनकी आवश्यकता तक ही सीमित हो कर रह गया | यहां तक की दादा- दादी , नाना -नानी तक से बच्चों की दूरियां बढ़नी शुरू हो गई | जिस पढ़ाई, जिस शिक्षा की बदौलत हम सामाजिक बदलाव लाने की बात सोचा करते है, उस शिक्षा ने रिश्ते नातों को सीमित कर दिया | बच्चों की यह महंगी होती शिक्षा हमें जो रास्ते दिखती है वो रास्ता हमारी ना तो सामाजिक सोच बनने देता है ना मानवीय | वो रास्ता पैसा कमाने के लिए हमे बाध्य करता है | और पैसा कमाने की इस लालसा में हम बच्चों को उच्च शिक्षा और व्यवसायिक शिक्षा तो दिला पा रहे है | लेकिन रिश्तों की ये बढ़ती दूरियां बच्चों को परिवार की पाठशाला से तथा नैतिक और व्यवहारिक शिक्षा से दूर करती जा रही है | यही वजह है की हर इंसान अपनी आवश्यकताओ लिए जिंदगी जीने लगा है और वह अपने आप तक ही सीमित हो कर रह गया है |
यह बात सच है की इंसान आज अपने तक ही सीमित होता जा रहा है | जो आने वाले समय में सामाजिकता के लिए बहुत बड़ी चुनौती बन जायगा | किसी जमाने में हम दो हमारे दो छोड़ आज हर व्यक्ति हम दो हमारा एक या हमारी एक तक सीमित होता जा रहा है | कहा जाता है सीमित परिवार सुखी परिवार ये बात सही भी है | एक समय था जब घर में कमाने वाला एक होता था और खाने वाले 8 -10 होते थे तब भी आदमी बिना तनाव के हंसी ख़ुशी अपने बच्चो का पालन पोषण करता था ,सामाजिक रिति रिवाजों में शरीक होता था | समय और वक्त ने इन्सान की सोच बदली और एक सामजिक बदलाव की बात सामने आने लगी | लोग शिक्षा के महत्व को समझने लगे अपने बच्चो को अच्छी शिक्षा दिलाने के लिए और समाज में जागरूकता लाने के लिए छोटे परिवार की आवश्यकता पर बल दिया जाने लगा |
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लोगो को ऐसा लगने लगा की शायद बच्चों को अच्छी शिक्षा और सुख सुविधाएं देने तथा अपने परिवार का ठीक तरह से पालन पोषण करने के लिए छोटे परिवार का होना निहायत ही जरूरी है | उसके लिए हमने सोच बदलनी शुरू की और बच्चों की शिक्षा पर ध्यान देने के लिए अपनी आवश्यकताओ को सीमित कर अनावश्यक सामाजिक रीती रिवाजो को सीमित कर अपना पेट काट- काट कर अपने परिवार और रिश्तो को सीमित करने के लिए फ़ालतू खर्चों , फालतू रिति रिवाजों को कम करने की आवश्यकता महसूस की गई ताकि इंसान अपने बच्चों को पढ़ा सके, उन्हें शिक्षित कर अच्छा इंसान बना सके | शायद लड़कों को पढाने से भी सामाजिक समस्याओ का समाधान निकलता सा नजर नहीं आने की वजह से लड़कियों की शिक्षा पर भी बल दिए जाने का दौर शुरू हुआ | समाज में बड़ा परिवर्तन लाने के लिए वास्तव में यह भी जरूरी कदम था और इसके लिए हमने लड़का लड़की एक समान पर भी सोचना शुरु कर दिया जो हमारी बहुत ही अच्छी सामजिक सोच को दर्शाता है |
google imageलोगो को ऐसा लगने लगा की शायद बच्चों को अच्छी शिक्षा और सुख सुविधाएं देने तथा अपने परिवार का ठीक तरह से पालन पोषण करने के लिए छोटे परिवार का होना निहायत ही जरूरी है | उसके लिए हमने सोच बदलनी शुरू की और बच्चों की शिक्षा पर ध्यान देने के लिए अपनी आवश्यकताओ को सीमित कर अनावश्यक सामाजिक रीती रिवाजो को सीमित कर अपना पेट काट- काट कर अपने परिवार और रिश्तो को सीमित करने के लिए फ़ालतू खर्चों , फालतू रिति रिवाजों को कम करने की आवश्यकता महसूस की गई ताकि इंसान अपने बच्चों को पढ़ा सके, उन्हें शिक्षित कर अच्छा इंसान बना सके | शायद लड़कों को पढाने से भी सामाजिक समस्याओ का समाधान निकलता सा नजर नहीं आने की वजह से लड़कियों की शिक्षा पर भी बल दिए जाने का दौर शुरू हुआ | समाज में बड़ा परिवर्तन लाने के लिए वास्तव में यह भी जरूरी कदम था और इसके लिए हमने लड़का लड़की एक समान पर भी सोचना शुरु कर दिया जो हमारी बहुत ही अच्छी सामजिक सोच को दर्शाता है |
इस सोच के साथ हमने शिक्षा ,खेलकूद ,राजनीति हर क्षेत्र में लड़के और लड़कियों को आगे बढ़ने के मोके देना प्रारम्भ किया | शिक्षा और अपने बच्चों की सुविधाओं के लिए भले ही हमने अपने रिश्तो को सीमित करना शुरू कर दिया हो परन्तु हमने नजदीकी रिश्तों से भी दूरी बनानी शुरू कर दी और हमारा ध्यान सिर्फ बच्चों की शिक्षा उनकी आवश्यकता तक ही सीमित हो कर रह गया | यहां तक की दादा- दादी , नाना -नानी तक से बच्चों की दूरियां बढ़नी शुरू हो गई | जिस पढ़ाई, जिस शिक्षा की बदौलत हम सामाजिक बदलाव लाने की बात सोचा करते है, उस शिक्षा ने रिश्ते नातों को सीमित कर दिया | बच्चों की यह महंगी होती शिक्षा हमें जो रास्ते दिखती है वो रास्ता हमारी ना तो सामाजिक सोच बनने देता है ना मानवीय | वो रास्ता पैसा कमाने के लिए हमे बाध्य करता है | और पैसा कमाने की इस लालसा में हम बच्चों को उच्च शिक्षा और व्यवसायिक शिक्षा तो दिला पा रहे है | लेकिन रिश्तों की ये बढ़ती दूरियां बच्चों को परिवार की पाठशाला से तथा नैतिक और व्यवहारिक शिक्षा से दूर करती जा रही है | यही वजह है की हर इंसान अपनी आवश्यकताओ लिए जिंदगी जीने लगा है और वह अपने आप तक ही सीमित हो कर रह गया है |
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