geeta updesh in hindi .गीता उपदेशों से कैसे करें तनाव दूर

भगवत गीता के उपदेश यदि मनुष्य अपने जीवन में उतार  ले तो वह अपनर तनाव ग्रस्त  जीवन से तनाव मुक्त हो सकता है साथ साथ सामाजिक जीवन को भी सुधार सकता है | लेकिन किसी भी मनुष्य के लिए सम्पूर्ण गीता के उपदेशों को अपने जीवन में लागू कर पाना या उन पर चल पाना आज के इस आधुनिक जीवन में संभव नहीं है | फिर भी गीता सार को   समझ कर गीता से सीख  लेकर  भी  आज के कष्टमय और तनाव ग्रस्त जीवन को दुःखी होकर जीने की बजाये प्रसन्नता पूर्वक भी  जीया जा सकता है |  

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1. गीता में श्री कृष्ण ने कहा है कर्म किये जा फल की इच्छा मत कर लोग कर्म तो शुरू करते हैं लेकिन फल की इच्छा में उसे पूर्ण होने से पहले ही छोड़ देते हैं | जबकि थोड़ा कष्ट सहन करके बिना फल की इच्छा किये अपने कार्य को लगातार जारी रखा जाए तो उसका फल निश्चित रूप से मिलेगा | 
2. गीता में उपदेश दिया गया है अपने मन की बात हमे किसी न किसी से अवश्य शेयर  करनी चाहिए क्योंकि हम किसी भी बात को अपने मन में रखकर अंदर ही अंदर घुटते रहते हैं और उसका जहर हमारे मन में घोलते रहते हैं | जो हमारे लिए तो नुकसानदायक है ही दूसरों के लिए भी नुकसान दायक है | अतः अपने मन की घुटन से बचने के लिए किसी न किसी को अपने सबसे नज़दीक रखना बहुत आवश्यक है | जो आपके मन की बात समझ सकता हो , सुन सकता हो ,आपको उचित मार्गदर्शन दे सकता हो | जब मन में घुटन कम होगी तो आपका चेहरा स्वतः ही प्रसन्ता से खिल उठेगा | अक्सर अधिकतर लोग सही और गलत के  चक्कर में अपने मन की सही बात को भी  किसी से कहने में हिचकते है |  

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3. जिस बात को हम अपने लिए गलत समझते हैं वह दूसरों के लिए कभी सही  नहीं हो सकती | लेकिन आज अपने स्वार्थ के लिए व्यक्ति वो भी दूसरों पर थोपने के  लिए तैयार ही जाता है जो उसे खुद के लिए अच्छा नहीं लगता | 

4  गीता हमे सन्देश देती है की बहुत ज्यादा ख़ुशी व बहुत ज़्यादा दुःख में कभी निर्णय नहीं लेना चाहिए | क्योंकि इन दोनो स्थितियों में लिए गए निर्णय अक्सर गलत होते हैं | यदि आपका समय बहुत अच्छा चल रहा है तो उस ख़ुशी में जल्द बाज़ी में निर्णय नहीं लेकर थोड़ा रूक कर निर्णय ले क्योंकि  अक्सर ख़ुशी में लोग गलत निर्णय ही लेते है  |  यदि समय बहुत बुरा या दुःख का चल रहा है, विपत्ति का चल रहा है तो उसे टाल कर ही निर्णय लें | क्योंकि  दुखी व्यक्ति अपने दुखों  के नीचे  इस कदर दबा होता है की वह सही निर्णय तक पहुंच ही नहीं  पाता  है  | इस लिए निर्णय लेने से पूर्व अपने आप को नार्मल अवश्य कर ले  | 

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5. भले ही आप जीवन में किसी को फायदा मत पहुंचाओ किसी का भला मत करो लेकिन कभी किसी का नुकसान मत करो अहित मत करो दुःख मत पहुंचाओ |  जरूरी नहीं की हम किसी को आर्थिक लाभ ही पहुचाये  हम शारीरिक और मानसिक श्रम  के द्वारा भी किसी को फायदा पहुंचा  सकते है |   अक्सर हम अपने थोड़े से फायदे के लिए किसी को बड़ा नुक्सान पहुंचाने से भी नहीं चूकते है  |  हमे तो थोड़ा सा फायदा मिल जाता है परन्तु सोच कर देखे जिसे नुक्सान पहुंचा है उस पर क्या बीती होगी ?  बल्कि इसका उलटा करके देखें  अपने थोड़े से नुक्सान उठाने से किसी को बहुत बड़ा फायदा मिल रहा हो तब  आप क्या करेंगे ? आप अपना  थोड़ा सा नुक्सान उठा कर देखें   ( जो अक्सर लोग नहीं कर पाते है )  भले ही  इसे कोई देखे या न देखे ऊपर वाला जरूर देखेगा  नफे नुक्सान को नहीं समझ पाने की हमारी यही सोच हमे  आगे बड़ने  से रोके हुए है  | 

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