एक सभ्य समाज के लिए नैतिकता की बात करना समाज के हर वर्ग के उत्थान के लिए जरूरी है | नैतिकता का प्रश्न जब भी खड़ा होता है नेता -अभिनेता, स्त्री- पुरुष, ईमानदार- बेईमान, अपराधी- साहूकार, ज्ञानी- अज्ञानी सभी अपने आप को नैतिक बताने और साबित करने में जुट जाते है | और यदि कुछ अनैतिक लगता भी है तो हम सभी मिलकर स्कूली शिक्षा को नैतिकता के लिए जिम्मेदार ठहराते है | क्योंकि हर कोई यह मानता है की नैतिकता सीखाने की जिम्मेदारी शिक्षक वर्ग की और सीखने की सिर्फ विद्यार्थियों की है |
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हम छोटे- छोटे बच्चो से नैतिकता की अपेक्षा रखते है क्या बड़ो को नैतिकता सीखने की आवश्यकता नहीं है ? क्या बड़ो को अपने अंदर झाँकने की आवश्यकता नहीं है की हम कितने नैतिक है ? जब कोई भी व्यक्ति स्वयं कोई कार्य करता है तब वह नैतिकता और अनैतिकता के मुद्दे पर इतना गंभीर नहीं होता लेकिन जब वही कार्य कोई दूसरा करता है तब हमें नैतिक अनैतिक का आभास होता है | ऐसा क्यों ? जरा सोचिए झूठ सच करना या गाली गलोच करना बच्चे घर या आस पास के माहौल से सीखते है और हम सुधार की अपेक्षा स्कूलों से करते है | स्कूलों से अपेक्षा करना गलत नहीं है परन्तु यह ठीक उस बीमारी की तरह से है जिसका इलाज हम घर पर कर सकते है लेकिन फिर भी डाक्टर के पास जाते है | और डाक्टर के बताये नुस्खे को अपनाये बिना स्वस्थ नहीं होने पर डाक्टर को ही दोषी करार दे देते है |
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कुल मिलाकर नैतिकता की परिभाषा को हमने अपने बच्चों के लिए ही असमंजस बना दिया है | बच्चे भी यह समझने लगे है बड़े जो करते है वह सब नैतिक है | मसलन नशा करना, गुटका तम्बाकू खाना, गाली गलोच करना जब तक वह बच्चे है यह उनके लिए अनैतिक है जब वो बड़े हो जाएंगे तब उनके लिए भी यह नैतिक हो जायेगा | जरा सोचिये जब बच्चे झूठ सच करते है तो हम उन्हें डांटते है गुस्सा करते है | हम भले ही उनके सामने झूठ को सच में बदल दे और सच को झूठ में | हम तो चार कदम चलने की जहमत भी नहीं उठाते है | बीड़ी, सिगरेट, तम्बाकू तक बच्चो से मंगवा लेते है और उन्हें गर्व से नसीहत देते है कि उन्हें इन चीजों से दूर रहना चाहिये | और तो और शराब के नशे में कोई अपने मोहल्ले या घर में चाहे कितना ही उत्पात मचा ले लेकिन बच्चो को नसीहत देना नहीं भूलते की नशा बहुत बुरी चीज है |
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जो बाते हम बच्चो को सीखाना चाहते उन पर बड़ो को भी अमल करने की बहुत ही जरूरत है | नैतिकता बच्चो के लिए ही नहीं हम बड़ो को भी सीखनी चाहिए | नैतिकता की सही परिभषा बच्चो तक पहुंचाने के लिए पहले जो विरोधाभास हम बच्चो के मन में पैदा कर चुके है उसे दूर करना होगा | पहले हम बड़ो को नैतिकता के दायरे में आना होगा | हमे नैतिकता सीखनी और समझनी पड़ेगी तभी हम बच्चो को सही नैतिक शिक्षा दे पाएंगे | वरना स्कूलों को नैतिकता सीखाने के लिए भारी फ़ीस चुका कर भी हम संतुष्ट नहीं हो पाएंगे | स्कूलों या बच्चों को नैतिक अनैतिक बात के लिए दोष देने से पहले इस बात को भी समझना जरूरी है की पहली पाठशाला घर होती है | दुनिया बदलने के लिए बदलाव हमे अपने आप में भी लाना होगा आप ही सोचिये ऐसे में कहां तक उचित है स्कूली शिक्षा को नैतिकता के लिए जिम्नेदार ठहराना |
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