बुरे लोगों को चलन में लाने से बचने का एक मात्र उपाय

   बुरे लोगों को चलन में लाने से  बचने का एक मात्र उपाय


व्यक्ति का स्वभाव अक्सर परिवार की खुशहाली के लिए जिम्म्मेदार होता है | हर परिवार हर समाज में अच्छे लोगो की संख्या की कोई कमी नहीं है | समाज में  हर परिवार में  अच्छे लोगो की संख्या अधिक होती है | बुरे लोगो की कम | फिर भी अच्छे लोगो का अभाव  महसूस किया जाता है | जरा सोच कर देखिये ऐसा क्यों होता है ? मित्रों,  दोस्तों ऐसा इसलिए होता है कि  बुरे लोग अच्छे लोगो को चलन से बाहर कर देते है |  प्रख्यात अर्थ शास्त्री ग्रेशम  का  यह सिद्वान्त  है कि   बुरी मुद्रा अच्छी मुद्रा को चलन से बाहर कर देती है  ठीक उसी प्रकार सामाजिक सिदांत है  कि  बुरे लोग अच्छे लोगो को चलन से बाहर कर देते है | जब कहीं  कोई विवाद होता है  चाहे वो घर परिवार में हो, पास पड़ोस में हो, पति पत्नी में हो  या समाज में |  गलत व्यक्ति या बुरे व्यक्ति को समझना ज्यादा कठिन होता है |   अक्सर नुक्सान भी समझदार व्यक्ति को ही उठाना पड़ता है  |   लोग भी समझदारी दिखाने की अपेक्षा समझदार  व्यक्ति से ही  करते  है  |


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 इसीलिए   विवादों के फैसले भी  सही गलत के आधार पर नहीं  लिए जाते | शायद आपको यह जानकर आश्चर्य हो |   अक्सर फैसले  लिए जाते है  समझदारी के   आधार पर  | यह एक कटु सत्य है |   किसकी बात सच है किसकी गलत  ? कौन  तर्क संगत बात कर रहा है कौन तर्क हीन  पता सभी को चल ही जाता है | परन्तु विवाद को खत्म करने के लिए तर्क संगत बात करने वाले या  समझदारी दिखाने वाले को ही  सलाह देना उचित समझा जाता है |  वो इसलिए नहीं की समझदार व्यक्ति को कोई  नुक्सान  पहुँचाना  चाहता है  बल्कि  इसलिए भी की परिस्थितियों के अनुसार तर्क संगत बात करना ही समझदारी होती है |  और  इसलिए भी  की विवादों को निपटाने में सही गलत की  नहीं  बल्कि समझदारी कि   आवश्यकता  होती  है जो  नासमझ व्यक्ति कभी नहीं  दिखा सकता | अक्सर समझदार विनम्र , सहनशील  ,व्यक्ति को  इस बात का मलाल भी होता है |   की लोग उसे ही  नुक्सान पहुंचाते है, उसे ही दबाते है, उसे ही झुकने को कहते है | यही मलाल अच्छे लोगों  को चलन से बाहर कर देता है  |


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 इसलिए  ये हम सभी की जिम्मेदारी बनती है की विनम्र, सहनशील, नेकदिल इंसान के त्याग को समझे |  किसी ना किसी रूप में उनके  त्याग से हुए नुक्सान की भरपाई अवश्य करे  | क्योंकि  ऐसे व्यक्तियों का चलन से बाहर होना बुरे लोगों  के चलन को बढ़ावा देता है |  हमे यह भी समझना होगा  सहनशीलता विनम्रता झुक तो सकती है परन्तु गिर नहीं सकती  |  धैर्यशील , सहनशील , विनम्र  व्यक्ति फल ,फूलों  से लदे   पेड़ों  की तरह होते है | अड़ियल, कुंठित ,झगड़ालू व्यक्ति रूखे वृक्षों की तरह होते है |  जो ना तो किसी को छाया दे पाते है  ना उन पर कोई फल लगा होता है |  ऐसे पेड़ हरियाली में भी अलग ही नजर आ जाते है |  अक्सर हरे भरे फल फूलो से लदे  पेड़ो के नीचे  लोग आ कर रुकते है  | उनकी छाया का आनंद लेते है |  फूलों  की खुशबु सूंघते है |  फलों  की मिठास चखते है | उस वक्त भले ही लोग अपने मन आत्मा को तृप्त कर बिना धन्यवाद दिए ही चले जाते हो |  लेकिन वक्त आने पर छाया, खुशबू और स्वाद की तारीफ़  कर उस पेड़ को याद जरूर करते है | इसलिए  हम सभी की यह  जिम्मेदारी बनती है की अच्छे लोगों  को चलन से बाहर ना होने दे उन्हें इस बात का मलाल ना होने दे कि  उन्होंने त्याग करके या नुक्सान उठा कर कोई गलती की है  | बुरे लोगों को चलन में लाने से  बचने का एक मात्र उपाय यही  है  कि अच्छे लोगों  को चलन में लाया जाए | और इसके लिए जरूरी है अपने आप को भी फल फूलो से लदा  छायादार वृक्ष बनाओ  रुखा वृक्ष नहीं | 
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