मानना न मानना सुनना न सुनना समझना न समझना के इर्द गिर्द घूमता है हमारा जीवन
यह जीवन वास्तव में इतना बुरा नहीं है जितना हमने बना दिया दुःख जीवन में इतने नहीं हैं जितने हमने मोल ले लिए लोग इतने बुरे नहीं हैं जितने हमे दिखाई देने लगे हैं फर्क सिर्फ नजरिये का है | बात मानने न मानने का है, समझने और न समझने का है, देखने और न देखने का है, कहने और न कहने का है, सुनने और न सुनने का है, सकारात्मक और नकारात्मक सोच का है | https://goo.gl/images/w8YGSc अक्सर यह कहा जाता है मेरी कोई बात मानता ही नहीं है पहले तो यह बताओ आज तक जितनी मानी उसका क्या हिसाब है? दूसरी बात यदि नहीं भी मानी तो इतना बवाल क्यों? और यदि आपकी मान ली तो जिनकी नहीं मानी वो क्यों दुखी हैं ?इस बात को समझने वाले कितने लोग हैं ?और न समझने वालों की लाइन तो बहुत ही बड़ी होगी इस समझने और न समझने के खेल को समझा समझा कर लोग थक गए और इसी वजह से अंतिम वाक्य के रूप में ये वाक्य काम में लिए जाते हैं कौन माथा फोड़ी करे ? कौन समस्या मोल ले ? समझकर कौन बेइज्जती कराएगा ? यही नकारात्मकता हमे ही नहीं ...